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कबीर निर्गुण संत परंपरा के कवि हैं और यह पद (बालम आवो हमारे गेह रे) साकार प्रेम की ओर संकेत करता है। इस संबंध में आप अपने विचार लिखिए।

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कबीर निर्गुण संत परंपरा के कवि हैं और यह पद (बालम आवो हमारे हाथों रे) साकर प्रेम की ओर संकेत करता है

Explanation:

"1) कबीर निर्गुण संत परंपरा के कवि हैं और यह पद (बालम आवो हमारे हाथों रे) साकर प्रेम की ओर संकेत करता है। यह ऐसा नहीं है। कबीर मूर्ति पूजा के खिलाफ हैं। लेकिन वह प्रेम, समाज संबंधों आदि में विश्वास करते हैं।

2) वह जानता है कि प्रेम का कोई आकार नहीं है। प्यार केवल एक एहसास है जो अपने प्रेमी को एक खुशी देता है। उसी तरह भक्ति भी एक भावना है जो भावना अपने भक्त को दे रही है।

3) इस पंक्तियों में भक्त अपने भगवान की झलक पाने का मार्ग देख रहा है। इसलिए कबीर अपने देवता का मुख देखने वाले हैं। यह भक्ति की भावना है। तो कबीर भी निर्गुण संत परंपरा से कवि हैं।"



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