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‘कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन’ को विस्तारपूर्वक समझाइए।

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‘कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन’- पंक्ति में कवि रहीम ने स्वाति नक्षत्र में बादलों से गिरने वाली पानी की बूंद के माध्यम से संगति के मनुष्य के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि जैसी संगति बैठिए तैसोई गुन दीन” अर्थात् मनुष्य जैसे लोगों की संगति में रहता है, उसमें वैसे ही गुण (दुर्गुण भी) उत्पन्न हो जाते हैं। स्वाति नक्षत्र में जब बादलों से वर्षा की बूंद गिरती है तो वह केले में गिरने पर कपूर बन जाती है, सीप में गिरने पर मोती बन जाती है तथा सर्प के मुख में गिरने पर विष बन जाती है। इस प्रकार जल की बूंद संगति के प्रभाव से तीन रूपों में बदल जाती है। केले का साथ मिलने पर कपूर बनती है तो सीप को साथ होने पर मोती बन जाती है। वही बूंद सर्प के मुख में गिरती है तो विष बन जाती है। इस उदाहरण द्वारा कवि संगति के प्रभाव का वर्णन करना चाहता है। मनुष्य जैसे लोगों के साथ रहता है, वैसा ही उसका चरित्र बन जाता है।



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