| Answer» केन्द्र तथा राज्यों के मध्य तनाव के सांविधानिक कारण समय-समय पर केन्द्र तथा राज्य सरकारों के मध्य उपस्थित होने वाले संघर्ष एवं तनावों के कारणों को निम्नलिखित वर्गों में रखा गया है – (1) भारतीय संविधान में शक्तियों का वितरण केन्द्र के पक्ष में अधिक है। संघ सूची तथा समवर्ती सूची में केन्द्रीय कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका को इतने अधिकार प्रदान किए गए हैं कि राज्यों की स्वायत्तता पर आँच आ सकती है। 1970 में तमिलनाडु सरकार द्वारा नियुक्त राजमन्नार समिति ने सिफारिश की थी कि –⦁    संघ सूची तथा समवर्ती सूची में से कुछ शक्तियाँ निकालकर राज्य सूची में डाल देनी चाहिए।
 ⦁    वित्त आयोग को एक अस्थायी अधिकरण बना देना चाहिए, एवं
 ⦁    केन्द्रीय राजस्व स्रोतों को हटाकर राज्यों को हस्तान्तरित कर देना चाहिए जिससे केन्द्र पर राज्यों की वित्तीय निर्भरता कम हो।
 (2) राज्य सदैव यह अनुभव करते हैं कि उनकी विधायी तथा प्रशासनिक शक्तियाँ सीमित हैं तथा उन्हें अपने निर्णयों के कार्यान्वयन में केन्द्र के निर्णय का इन्तजार करना पड़ता है। जब केन्द्र तथा राज्य में एक ही दल की सरकार रहती है तब तो समस्या प्रबल नहीं हो पाती है, किन्तु विपरीत स्थिति में तनाव प्रायः बढ़ जाता है। उदाहरणार्थ-1967 के पश्चात् राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारें बनीं तो शक्तियों के पुनः वितरण की आवाज विशेष रूप से उठाई गई।(3) राज्यपाल केन्द्र द्वारा नियुक्त ऐसे शक्तिशाली अभिकरण हैं जो राज्यों में केन्द्र का वर्चस्व रखने में सहयोग देते हैं। संविधान उन्हें अधिकार देता है कि समवर्ती सूची में संबंधित विधेयकों को वे राष्ट्रपति की अनुमति के लिए सुरक्षित रखें तथा केन्द्रीय सरकार को यह अवसर प्रदान करें कि वह राष्ट्रपति द्वारा राज्यों द्वारा पारित विधेयक अथवा विधेयकों को अस्वीकृत करा दे। केरल के राज्यपाल ने ई०एम०एस० नम्बूदरीपाद के नेतृत्व वाली साम्यवादी सरकार का प्रगतिशील भूमि सुधार विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के लिए सुरक्षित रख लिया था। इसके पश्चात् केन्द्रीय सरकार ने इस विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा अस्वीकृत करा दिया। गैर-कांग्रेसी राज्य सरकारें राज्यपालों की भूमिका से सशंकित रहती हैं। आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन०टी० रामाराव ने तो उन्हें केन्द्रीय जासूस’ तक की संज्ञा दे दी थी। अनेक अवसरों पर गैर-कांग्रेसी सरकारों द्वारा राज्यपाल पद को ही समाप्त करने की माँग की गई है। राज्यपाल पद ने केन्द्र-राज्य संबंधों में तनाव तथा संघर्ष की स्थिति उत्पन्न की है।
 (4) आपातकालीन उपबन्धों ने संविधान को एकात्मक स्वरूप प्रदान कर दिया है तथा आपातकाल के समय राज्य सम्पूर्णत: केन्द्र निर्देशित इकाइयाँ बन जाते हैं। यह स्थिति कुछ राज्य सरकारों हेतु बहुत अप्रिय रही है। तनाव के सांविधानिक कारणों का अध्ययन करने पर यह लक्ष्य सामने आती है। राज्य चाहते हैं कि उन्हें अधिक स्वायत्तता प्रदान की जाए तथा उन पर केन्द्र का अंकुश न रहे।
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