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केन्द्र व राज्यों के मध्य विधायी सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।

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संघात्मक शासन व्यवस्था की यह विशेषता होती है कि इसमें केन्द्र और इकाई राज्य सरकारों के मध्य शक्तियों, अधिकारों एवं कार्यों का संविधान द्वारा स्पष्ट विभाजन कर दिया जाता है, जिससे केंद्र एवं राज्य-सरकारों के मध्य किसी भी प्रकार का विवाद उत्पन्न न हो, दोनों सरकारें अपने-अपने कार्यों एवं उत्तरदायित्वों का समुचित रूप से पालन कर सकें और सम्पूर्ण देश में शान्ति एवं सुरक्षा का वातावरण बना रहे।

केंद्र व राज्य के मध्य विधायी संबंध

संविधान ने विधि या कानून का निर्माण करने से संबंधित विषयों की तीन सूचियाँ बनाई हैं। इन सूचियों को बनाने का उद्देश्य केंद्र और राज्यों की सरकारों के मध्य विधि-निर्माण संबंधी क्षेत्रों को विभक्त करनी है। ये सूचियाँ निम्नलिखित हैं –

1. संघ सूची (Union List) – इस सूची के अंतर्गत उन विषयों को रखा गया है, जिन पर केवल केंद्र सरकार की कानूनों का निर्माण कर सकती है। ये विषय बहुत महत्त्वपूर्ण एवं राष्ट्रीय स्तर के हैं। इस संघ सूची में 97 विषय हैं। इस सूची के प्रमुख विषय–रक्षा, वैदेशिक मामले, युद्ध व संधि तथा बैंकिंग आदि हैं।
2. राज्य सूची (State List) – मूल संविधान में इस सूची में 66 विषय थे। परन्तु 42वें संवैधानिक संशोधन के उपरान्त अब इस सूची में 62 विषय रह गए हैं। इन सब विषयों से संबंधित कानूनों का निर्माण करने का अधिकार राज्य सरकारों को होता है। वैसे तो इन विषयों पर केवल राज्य सरकारें ही कानून बना सकती हैं; किंतु कुछ विशेष स्थितियों में केंद्र सरकार भी इन विषयों पर कानून बना सकती है। इस सूची के प्रमुख विषय-पुलिस, न्याय, कृषि, स्थानीय स्वशासन आदि हैं।
3. समवर्ती सूची (Concurrent List) – मूल संविधान में इस सूची में 47 विषय थे, परन्तु अब इस सूची में 52 विषय हो गए हैं। इन विषयों पर राज्य एवं केंद्र-दोनों सरकारों को कानून बनाने का समान अधिकार है, परन्तु मतभेद की स्थिति में संघ सरकार के कानून को प्राथमिकता दी जाती है। इस सूची के प्रमुख विषय फौजदारी विधि-प्रक्रिया, शिक्षा, विवाह, न्यास (ट्रस्ट), वन आदि हैं।
4. अवशिष्ट शक्तियाँ (Residuary Powers) – यदि कोई विषय उपर्युक्त तीनों सूचियों में सम्मिलित न हो तो वह अवशिष्ट विषय कहा जाता है और उस पर कानून बनाने का अधिकार केवल संघ सरकार को ही है।

अतः इन सूचियों के विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों के विधि-निर्माण से संबंधित अधिकार-क्षेत्र पृथक्-पृथक् हैं। इस विभाजन के आधार पर यह भी स्पष्ट होता है कि केन्द्र सरकार राज्य सरकार की तुलना में अधिक शक्तिसम्पन्न है। यद्यपि समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार दोनों सरकारों को प्राप्त होता है; किन्तु सामान्यतया इन विषयों पर संसद ही कानूनों का निर्माण करती है तथा मतभेद होने की स्थिति में संघ सरकार का कानूनी मान्य होता है।

[नोट – 42वें संवैधानिक संशोधन 1976 के द्वारा राज्य सूची के चार विषय (शिक्षा, वन, वन्य जीव-जन्तुओं और पक्षियों का रक्षण तथा नाप-तौल (समवर्ती सूची में सम्मिलित कर दिए गए तथा समवर्ती सूची में एक नया विषय जनसंख्या नियन्त्रण और परिवार नियोजन’ जोड़ा गया। अब समवर्ती सूची में 52 विषय और राज्य सूची में 62 विषय रह गए हैं।]

राज्य सूची के विषयों पर कानून-निर्माण की संसद की शक्ति – संविधान ने संसद को विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बनाने का अधिकार दिया है। ये परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं –

1. संकटकाल की घोषणा के समय – आपातकाल में राज्य सूची के अंतर्गत आने वाले विषयों पर संसद को विधि-निर्माण का पूर्ण अधिकार प्राप्त है।
2. राज्य सूची का कोई विषय राष्टीय महत्त्व का होने पर – यदि राज्यसभा अपने दो-तिहाई बहुमत से अपने एक प्रस्ताव के माध्यम से राज्य सूची के किसी विषय के संबंध में यह घोषणा कर दे कि राष्ट्रीय हित में उस विषय पर केंद्रीय सरकार को कानून-निर्माण करना चाहिए तो केंद्रीय सरकार (संसद) उस विषय पर कानून बना सकती है। यह कानून एक वर्ष तक लागू रह सकता है। राज्यसभा इसी आशय का दोबारा प्रस्ताव पारित करके इसकी अंवधि में वृद्धि कर सकती है।
3. राज्यों के विधानमण्डलों की प्रार्थना पर – यदि दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमण्डल यह प्रस्ताव पारित करें या याना करें कि राज्य सूची के अधीन किसी विषय पर संसद कानून बनाए तो संसद उस विषय पर भी कानून बनाती है।
4. विदेशी राज्यों से संधि के पालन करने के लिए – संविधान के अनुसार संसद को ही किसी संधि, समझौते या अन्य देशों के साथ होने वाले सभी प्रकार के समझौतों का पालन करवाने हेतु कानून बनाने का अधिकार है, भले ही वे विषय राज्य सूची के अंतर्गत आते हों।
5. राज्य में संवैधानिक व्यवस्था भंग होने पर – यदि किसी राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न हो जाए या इस राज्य का संवैधानिक तन्त्र विफल हो जाए तो अनुच्छेद 356 के अंतर्गत लगाए गए राष्ट्रपति शासन के अंतर्गत राष्ट्रपति राज्य विधानमण्डल के समस्त अधिकार संसद को प्रदान कर सकता है।
6. राज्यपाल द्वारा विधेयक को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित करना – राज्य के राज्यपाल को यह शक्ति प्राप्त है कि वह राज्य व्यवस्थापिका द्वारा पारित किसी भी विधेयक को राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए आरक्षित कर सकता है। राष्ट्रपति को अधिकार है कि वह उस विधेयक को स्वीकार करे अथवा अस्वीकार करे। केंद्र तथा राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन होने पर भी विशेष स्थितियों में केंद्र को राज्यों के विषयों पर कानून-निर्माण के व्यापक अधिकार प्राप्त हैं।



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