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केन्द्रीय समस्याएं क्यों उत्पन्न होती हैं? संसाधनों के आबंटन की समस्या की व्याख्या कीजिए।

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केन्द्रीय समस्याएँ उत्पन्न होने के पीछे तीन मूलभूत कारण हैं

(क) मानव आवश्यकताएँ असीमीत हैं-मानव की आवश्यकताएँ असंख्य तथा असीमित हैं जैसे ही एक इच्छा पूर्ण होती है। एक अन्य इच्छा जन्म ले लेती है। यदि इच्छाएँ सीमित होती तो एक समय ऐसा आता है। जब मनुष्य की सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती, परंतु ऐसा नहीं होता क्योंकि इच्छाओं का कोई अन्त नहीं है। परंतु सभी इच्छाएँ एक समान तीव्र नहीं होती। कुछ इच्छाएँ जरूरी होती हैं। कुछ कम जरूरी होती हैं। अतः इच्छाओं का प्राथमिकीकरण करना सहज हो जाता है।
(ख) सीमित साधन–इच्छाओं की तुलना में उनकी पूर्ति के साधन सीमित होते हैं। यह बात एक व्यक्ति के लिए भी सत्य है। तो एक संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए भी एक व्यक्ति की आये कितनी भी बढ़ जाये वह इतनी नहीं होती कि उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो सके। इसी प्रकार अमीर से अमीर अर्थव्यवस्था में उत्पादन कारक-श्रम, पूँजी, भूमि एवं उद्यम इतने नहीं होते कि सभी आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन किया जा सके।
(ग) साधनों के वैकल्पिक उपयोग-साधन न केवल सीमित हैं अपितु उनके वैकल्पिक उपयोग भी हैं। उदाहरण के लिए यदि एक श्रमिक है तो उसे कृषि में भी उपयोग किया जा सकता है तथा उद्योग में भी। इसी प्रकार यदि एक भूमि का टुकड़ा है तो उस पर स्कूल, कॉलेज, व अस्पताल, कृषि, उद्योग, घर आदि बन सकते हैं। एक प्रयोग करने पर हमें दूसरे प्रयोग का त्याग करना होगा। अतः साधनों के वैकल्पिक उपयोग होने के कारण हमें उनके सर्वोत्तम प्रयोग का चयन करना पड़ता है। अतः संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इच्छाओं की तुलना में वैकल्पिक उपयोग वाले संसाधनों की दुर्लभता आर्थिक समस्या को जन्म देती है।

संसाधनों के आबंटन की समस्या की व्याख्या इस प्रकार है-
(1) क्या उत्पादन करें?
(2) कैसे उत्पादन करें?
(3) किसके लिए उत्पादन करें?

(1) क्या उत्पादन करें – प्रत्येक अर्थव्यवस्था में असीमित भाव व इच्छाओं तथा सीमित व संसाधनों के कारण यह निर्णय लेना पड़ता है कि क्यों उत्पादन करें तथा कितनी मात्रा में उत्पादन करें। यदि एक अर्थव्यवस्था उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन अधिक करें तो वह पूँजीकृत वस्तुओं का उत्पादन कम कर पायेगी। इसी प्रकार यदि आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन किया जाए तो विलासिता की वस्तुओं का उत्पादन कम हो जायेगा।
(2) कैसे उत्पादन करें-प्रत्येक वस्तुओं का उत्पादन अनेकों तकनीकों से किया जा सकता है। मुख्यतः दो प्रकार की तकनीकें हैं (1) श्रम प्रधान तकनीक तथा (2) पूंजी प्रधान तकनीक। श्रम प्रधान तकनीक में श्रम अधिक तथा पूंजी कम प्रयोग होती है। तथा पूँजी प्रधान तकनीक में पूँजी अधिक तथा श्रम कम प्रयोग होता है। यदि हमारी अर्थव्यवस्था में पूँजी अधिक है तो पूँजी प्रधान तकनीक का उपयोग करना चाहिये। यदि हमारी अर्थव्यवस्था में श्रम अधिक है, तो श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग करना चाहिए।
(3) किसके लिए उत्पादन करें-इस समस्या का संबंध उत्पादित पदार्थ व सेवाओं के वितरण की समस्या से हैं, जब क्या उत्पादन करें तथा कैसे उत्पादन करें की समस्या का समाधान हो जाता है, तो प्रश्न उठता है कि इसका उपभोग कौन करेगा अर्थात किसके लिए उत्पादन किया है। कार्ल मार्क्स (Karl Marx) के अनुसार, “प्रत्येक से क्षमता अनुसार, प्रत्येक की आवश्यकता के अनुसार के आधार पर वितरण होना चाहिए।” अन्य विचारधारा के अनुसार उत्पादन का वितरण इस प्रकार हो, जो सभी को उपयोग की न्यूनतम मात्रा उपलब्ध हो सके।



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