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खालील श्लोकाचे भाषांतर करा. स्थानभ्रष्ठा न शोभन्ते दन्ता केशा नसा। इति विज्ञाय मतिमान् स्वस्थानं न परित्यजेत्।।​

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लेखक की दृष्टि में दो शब्द सभ्यता और संस्कृति की सही समझ अभी भी नहीं हो पाई है; क्योंकि इनका उपयोग बहुत अधिक होता है और वो भी किसी एक अर्थ में नहीं होता है। इनके साथ अनेक विशेषण लग जाते हैं; जैसे - भौतिक-सभ्यता और आध्यात्मिक-सभ्यता इन विशेषणों के कारण शब्दों का अर्थ बदलता रहता है। इससे यह समझ में नहीं आता कि यह एक ही चीज है अथवा दो? यदि दो है तो दोनों में क्या अंतर है? इसी कारण लेखक इस विषय पर अपनी कोई स्थायी सोच नहीं बना पा रहे हैं। MARK me as BRAN LIST



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