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खोई हुई वस्तु की खोज में आनंद मिलता है ऐसा लेखक क्यों कहते है ?

Answer» लेखक के अनुसार जब कोई वास्तु गम हो जाती है, तो हमें दुःख और तकलीफ जरूर होती है पर उसे ढूंढते समय खोई वस्तु मिल जाती है, तो उससे एक विशेष आनंद का अनुभव होता है।
लेखक की चीजे अक्सर खो जाया करती है। लोगों का मानना हिअ कि असावधानी बरतने से और वस्तुओं को ठिकाने से सहेजकर न रखने से लेखक अपनी चीजें हमेशा खो देते हैं। इस विषय में लिखक की सोच कुछ अलग प्रकार की है।
लेखक को लगता है कि जिनके यहाँ सभी काम, नियम और क्रम से होते है, जो अपने घर की सभी वस्तुओं पर नई संख्या देकर रखते हैं मानों यह चीजें कारागार की बंदी हो। उनके लिए खोई हुई वास्तव की खोज करने का आनंद असंभव है।
किसी नए नगर में जाने पर किसी को अपने डेरे पर पहुँचने के लिए गलियों में भटकते हुए चक्कर काटना पड़ता है। पर दस-बीस पग अगर अधिक चलकर निवास स्थान पर पहुँचते है, तो किये हुए कष्ट का आनंद मिलता है, ऐसा लेखक कहते है।
कभी-कभी खोई हुए चीज ढूँढ़ते - ढूँढ़ते कोई पहले से ही खोई हुई वास्तु मिल जाती है, इसलिए खोई हुई चीज ढूँढने का आनंद लेखक के लिए दोगुना होता है।
एक बार लेखक की नई किताब खो जाने पर उसे ढूँढ़ते समय अपने घर को उथल-पुथल कर रख दिया । फिर भी वह किताब नहीं मिली। इसलिए निराश होकर उन्होंने दोबारा वह किताब ख़रीदना तय किया और जब वे दूकान पर पहुँचे तब पुस्तक विक्रेता ने उन्हें बताया कि पुस्तक के दाम तो उन्होंने उसी दिन चुकाए पर पुस्तक दूकान पर ही छोड़ गए थे। लेखक ने कहा है कि यह बात सुनका उन्हें इतनी प्रसन्नता हुई कि वे पुस्तक मिलने पर खुश होकर कुछ और रूपये खर्च करने को तैयार हो गए।
इस तरह लेखक को खोई हुई वास्तु की खोज में आनंद मिलता है जिसका अनुभव सभी लोग नहीं कर सकते, ऐसे उनका मानना है।


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