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“खुश रहना केवल एक जरूरत नहीं है, यह एक नैतिक उत्तरदायित्व भी है”।

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लेखक का मत है कि मनुष्य को हर स्थिति में प्रसन्न रहना चाहिए। प्रसन्न रहने की कला सीख लेने पर अन्य किसी भी कला को सीखने की आवश्यकता नहीं होती। वे फ्रांसीसी लेखक आंद्री गीद (Andre Gide) के कथन का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि खुश रहना मनुष्य की जरूरत ही नहीं है, बल्कि यह उसका नैतिक उत्तरदायित्व है। हमारे सुख-दुःख की छूत दूसरों को भी लगती है। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि न हम उदास हों और न दूसरों को उदास करें। हम खुश रहेंगें तो अन्य भी खुश रह सकते हैं। एक अच्छे समाज के लिए खुश रहना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।



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