| Answer» लीसवीं सदी के प्रथमार्द्ध में तुर्की में धर्मनिरपेक्षता अमल में आई। यह धर्मनिरपेक्षता संगठित धर्म से सैद्धान्तिक दूरी बनाने के स्थान पर धर्म में सक्रिय हस्तक्षेप के माध्यम से उसके दमन की पक्षधर थी। मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने इस प्रकार की धर्मनिरपेक्षता प्रस्तुत की और उसे प्रयोग में भी लाए।अतातुर्क प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् सत्ता में आए। वे तुर्की के सार्वजनिक जीवन में खिलाफत को समाप्त कर देने के लिए कटिबद्ध थे। वे मानते थे कि परम्परागत सोच-विचार और अभिव्यक्तियों से नाता तोड़े बगैर तुर्की को उसकी दु:खद स्थिति से नहीं उभारा जा सकता। उन्होंने तुर्की को आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए आक्रामक ढंग से कदम बढ़ाए। उन्होंने स्वयं अपना नाम मुस्तफा कमाल पाशा से बदलकर अतातुर्क कर लिया। (अतातुर्क का अर्थ होता है तुर्को का पिता)। हैट कानून के माध्यम से मुसलमानों द्वारा पहनी जाने वाली परम्परागत फैज टोपी को प्रतिबन्धित कर दिया। स्त्रियों-पुरुषों के लिए पश्चिमी पोशाकों को बढ़ावा दिया गया। तुर्की पंचांग की जगह पश्चिमी (ग्रिगोरियन) पंचांग लाया गया। 1928 ई० में नई तुर्की वर्णमाला को संशोधित लैटिन रूप से अपनाया गया।
 |