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कर के सिद्धान्तों को समझाइए।

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कर के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

⦁    समानता का सिद्धान्त – कर इस प्रकार लगाए जाने चाहिए कि सभी करदाताओं पर कर का भार समान रूप से पड़े; अर्थात् धनी वर्ग पर कर अधिक तथा निर्धन वर्ग पर कम कर लगाये जाने चाहिए।
⦁    सुविधा का सिद्धान्त – कर इस प्रकार के होने चाहिए कि करदाता के लिए सुविधाजनक हों। कर देने की पद्धति एवं समय इस प्रकार निर्धारित किया जाए जिसमें करदाता को सुविधा हो।
⦁    मितव्ययिता का सिद्धान्त – करों का निर्धारण इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि करों को वसूल करते समय कम-से-कम खर्च हो तथा करों की प्राप्ति अधिक-से-अधिक हो। उपभोग जनहित की दृष्टि से हो रहा है अथवा नहीं। अत: ये कर करदाताओं में उत्तम नागरिकता की भावना जागृत करने में असमर्थ रहते हैं।
⦁    निश्चितता का सिद्धान्त – कर अधिनियम में कर सम्बन्धी सभी बातें निश्चित व स्पष्ट रूप से वर्णित होनी चाहिए।
⦁     पर्याप्तता का सिद्धान्त – करों का निर्धारण इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि करों से सरकार को पर्याप्त आय प्राप्त हो सके।
⦁     लोच का सिद्धान्त – कर-प्रणाली इस प्रकार की होनी चाहिए, जिसमें लोच का गुण विद्यमान हो अर्थात् सरकार आवश्यकतानुसार करों की मात्रा में वृद्धि कर सके।
⦁     सरलता का सिद्धान्त – कर-प्रणाली इस प्रकार की होनी चाहिए जिसे करदाता सरलतापूर्वक समझ सके।
⦁     उत्पादकता का सिद्धान्त – कर-प्रणाली इस प्रकार की होनी चाहिए कि सरकार को वर्तमान में पर्याप्त आय प्राप्त हो सके तथा भविष्य के लिए आय का स्रोत बना रहे।
⦁    विविधता का सिद्धान्त – कर-प्रणाली इस प्रकार की होनी चाहिए कि उसमें विविधता हो अर्थात् कर अनेक प्रकार के होने चाहिए जिससे देश का प्रत्येक नागरिक जनहित के कार्यों में सहयोग दे सके।



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