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कृषि उत्पादकता बढ़ाने के उपायों की चर्चा कीजिए ।

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भारत एक कृषिप्रधान देश है । भारतीय अर्थतंत्र के लिए कृषि रीड़ की हड्डी है । इसलिए भारतीय अर्थतंत्र के विकास के लिए कृषि उत्पादकता बढ़ाना जरूरी है । इसलिए हम यहाँ कृषि उत्पादकता बढ़ाने के उपाय निम्नानुसार हैं : 

(1) संस्थाकीय सुधार : कृषि क्षेत्र की कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए निम्नलिखित संस्थाकीय सुधार किये गये हैं :

(i) जमीन सम्बन्धी सुधार : भारत में किसान को जमीन मालिकी मिले तथा काश्तकार को जोत के अधिकार सुरक्षित करने के लिए जमीनदारी प्रथा समाप्त, जोत-अधिकार सुरक्षा तथा काश्त नियमन सम्बन्धी कानून पारित किया गया । जिससे किसानों का आर्थिक शोषण रुके तथा कृषि उत्पादकता का बड़ा हिस्सा प्राप्त कर सके ऐसी स्थिति का निर्माण होने से वे कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील होते हैं ।

(ii) संस्थाकीय ऋण की प्राप्ति : नीची कृषि उत्पादकता के लिए कृषि ऋण का अभाव भी जवाबदार है । इसलिए भारत में कृषि क्षेत्र तक ऋण और अन्य वित्तीय सुविधाएँ पहुँचाने के लिए सरकार ने 1969 और 1980 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया । NABARD की स्थापना की गयी जो कृषि क्षेत्र के लिए मध्यस्थ बैंक का एक अंग है । 1982 में RRBs और C.D.Bs की स्थापना करके किसानों को कर्जा समयसर, कमव्याज पर सरलता से मिल सके ऐसी व्यवस्था की है । जिससे किसान कृषि कार्य के लिए पूँजी प्राप्त करके कृषि उत्पादकता बढ़ा सकता है ।

(iii) कृषि उत्पादन की विक्रय व्यवस्था में सुधार : कृषि उत्पादो की विक्रय व्यवस्था में रही हुयी कमीयों दूर करने के लिए निम्नलिखित
कदम उठाये हैं :

  1. नियंत्रित बाज़ार की स्थापना की गयी है ।
  2. कृषि उत्पादनों की गुणवत्ता अनुसार उनका वर्गीकरण करने के लिए ‘ऐगमार्क’ (AGMARK = Agriculture Marketing) की प्रथा दाखिल की गयी है ।
  3. किसान अपने उत्पादन को संग्रह कर सके इस उद्देश्य से ‘राष्ट्रीय कोठार निगम’ और राज्य कोठार निगमों की स्थापना की है।
  4. कृषि उत्पादों के भाव की जानकारी प्राप्त हो ऐसी व्यवस्था की गयी है । (दूरदर्शन पर कृषि समाचार)
  5. किसानों का उत्पादन उचित मूल्य प्राप्त हो इसलिए सरकार द्वारा ‘न्यूनतम भाव’ घोषित किया गया है ।

(iv) कृषि संशोधन : भारतीय किसान कम शिक्षित होने से वह स्वयं संशोधन नहीं कर सकते हैं । इसलिए कृषि संशोधन की जवाबदारी
NABARD को सैंप दी है । जो विविध प्रकार के कृषि संशोधन करते हैं । इसके लिए प्रशिक्षण और समझ किसान तक पहुँचाई जाती है । जिससे किसान परम्परागत कृषि का उत्पादन न करे, परंतु बाज़ार में जिस वस्तु की मांग अधिक उसी के अनुसार बुआई करके अधिक आय प्राप्त करने के लिए बाज़ारलक्षी फसल का उत्पादन करे यह प्रयत्न किया जाता है । इसके उपरांत कृषि सुधार के कार्यक्रमों में किसानों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए, सामूहिक ग्राम विकास योजना, पंचायती राज, संकलित ग्रामविकास योजना, जनधन योजना आदि शुरू करके कृषि क्षेत्र आधुनिकीकरण की ओर प्रेरित करके कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए मोड़ सकते हैं ।

(2) टेक्नोलोजिकल सुधार : कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित टेक्नोलोजिकल सुधार निम्नलिखित हैं : 

(i) सुधरे हुए बीज : राष्ट्रीय कृषि संशोधन समिति, राष्ट्रीय बीज निगम और कृषि विश्व विद्यालयों में सुधरे हुये बीज विकसित करने के लिए अग्रिमता देकर कृषि उत्पादकता बढ़ा सकते हैं । सुधरे हुए बीज (हाइब्रिड बीज) विकसित करने से अधिक उत्पादन कर सकते हैं, रोगों से सामना कर सकते है । जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है । जिसे कृषि क्रांति के स्थान पर ‘बीज क्रांति’ के नाम से जानते हैं ।

(ii) रासायनिक खाद का उपयोग : जमीन की उर्वरक शक्ति को बढ़ाने के लिए रासायनिक खाद का उपयोग बढ़ा है । जिससे फसल को पर्याप्त पोषण मिले और तीव्रता से अधिक विकास हो इस उद्देश्य से विविध फसलों पर रासायनिक खाद का प्रयोगों से सिद्ध हुये रासायनिक खाद कृषि उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं । संबंधित फसल को आवश्यक नाइट्रोजन, फोस्फेट, पोटाश जैसे रासायनिक खाद का उपयोग किया जाये । इसके लिए सरकार किसानों को सबसिड़ी प्रदान की जाती है ।

(iii) सिंचाई की सुविधा में वृद्धि : भारत की खेती अभी भी वरसाद पर आधारित है । वरसाद अनियमित होने से उसकी असर कृषि उत्पादन पर पड़ती है । इसलिए हमें सिंचाई की सुविधा बढ़ाकर फसल को बचाना चाहिए । इसके लिए भारत में सिंचाई सुविधा बढ़ाने के लिए ‘सिंचाई क्षेत्र विकास योजना’ और ‘आंतर ढाँचाकीय विकास भंडार’ की रचना की गयी है । इस प्रकार सिंचाई की सुविधा बढ़ाकर उत्पादन बढ़ाना चाहिए ।

(iv) यंत्रो का उपयोग : भारत में नीची कृषि उत्पादकता के लिए एक कारण परम्परागत साधन या यंत्र भी हैं । वर्तमान समय में इन्जिनियरिंग और ओटोमोबाइल विकास के साथ ट्रेक्टर, ट्रेलर, थ्रेसर, इलेक्ट्रिक पम्पसेट, ऑयल इन्जिनो, दबा छिड़कने के लिए पंप आदि आधुनिक यंत्रो की खोज हुयी है । इसलिए इन यंत्रों का उपयोग करके कृषि में तीव्रता आती है और उत्पादन में वृद्धि होती है ।

(v) जंतुनाशक दवा : फसल संरक्षण के अभाव में फसल नष्ट होती है । इसलिए विविध प्रकार के जंतुनाशक दवाओं का उपयोग करके फसल संरक्षण के द्वारा कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं । इसके लिए सरकार भी किसानो ऋण और आर्थिक सहायता पहुँचाती है ।

(vi) भूमि परीक्षण : वर्तमान समय में वैज्ञानिक ढंग से कृषि में फसल लेने के लिए भूमि परीक्षण (Soil testing) करने की पद्धति प्रचलित बनी है । जो परीक्षण फसल के अनुकूल जमीन की गुणवत्ता है या नहीं तथा जमीन में जिन घटकों की गुणवत्ता है या नहीं तथा जमीन में जिन घटकों की कमी है । उसकी जानकारी देता है । जिससे फसल लेने से पहले जमीन की विशेष प्रकार की कमी को दूर करके कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं ।

(3) अन्य परिबल : कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए किसानों को शिक्षित करने के लिए तथा नवीन प्रकार की पद्धतियों से परिचित करवाकर किसान की कार्यप्रणाली को परिवर्तित होती है । तथा शिक्षित होने से ग्रामीण क्षेत्र में अंधविश्वास, प्रारब्धवाद समाप्त होता है । और नये परिबलों को स्वीकार करते हैं । तथा कृषि उत्पादकता में वृद्धि होती है ।

इसके उपरांत कृषि से सम्बन्धित उद्योग जैसे पशुपालन, मुर्गीपालन, बतक पालन, फुड प्रोसेसिंग कार्य, जंगल जैसे संशोधनों का
उपयोग बढ़ने से कृषि क्षेत्र पर भार कम होता है । जिससे उत्पादकता में वृद्धि होती है ।



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