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कुछ लोग ‘फिरकापरस्त’ होते हैं, मैं ‘फिकरापरस्त’ हूँ।

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फिरकापरस्त होना यानी जाति, संप्रदायवादी होना और फिकरापरस्त होना यानी किसी को लगनेवाली कोई बात मुंह से निकालना दोनों ही बरा माना जाता हैं और उनका नुकसान भुगतना पड़ता है। कहा गया है, बात का वार तलवार के वार से भी घातक होता है। लेखक अपनी फिकरापरस्ती का दोष खुद स्वीकार करते हैं और उसका परिणाम भुगतने में हिचकते नहीं।



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