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कवि बिहारीलाल को ‘गागर में सागर’ भरने वाला कहा जाता है। संचालित दोहों के आधार पर इस कथन पर आप अपना मत लिखिए।

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'गागर में सागर भरना’ एक मुहावरा है। इसका अर्थ है थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कहने की कला । कवि बिहारी ने अपनी काव्य-रचना के लिए छोटे से छंद दोहा को चुना है। दो पंक्तियों में वह इतना भाव सौन्दर्य, अलंकरण और कथन की विचित्रता भर देते हैं कि पाठक मुग्ध हो जाता है।

संकलित दोहों में अनेक दोहे बिहारी के इस गुण को प्रमाणित करते हैं।“अर्जी तयौना……… मुकुतन के संग ॥” दोहे में कवि ने विराधोभास का चमत्कर प्रदर्शित करते हुए, अनेक विषयों को नीति-कथन का लक्ष्य बनाया है। साधारण अर्थ है कि निरंतर एक ही रंग (स्वर्ण वर्ण) में रहते हुए तरयौना कान में ही पड़ा हुआ है जबकि मोतियों से युक्त होकर बेसर नाक पर स्थान पा गई है। यहाँ कवि ने ‘कान’ की उपेक्षा ‘नाक’ को श्रेष्ठ-सम्मान का प्रतीक-बताया है। अन्य अर्थों में वेद-अध्ययन की अपेक्षा महापुरूषों की संगति को उद्धर का श्रेष्ठ साधन बताया गया है। इसके अतिरिक्त कवि ने राजदरबारों में व्याप्त आपसी कांट-छांट के वातावरण को भी प्रकाशित किया है। ‘श्रुति सेवन’ का अर्थ कान भरना -चुगली करना-और ‘नाकवास’ को सम्मान का स्थन बताते हुए ‘तटस्थ और निष्पक्ष’ व्यवहार भी महत्ता सिद्ध की है।

ऐसे ही अन्य दोहे हैं-“कौ छुटयौ……… उरझत जात ॥” “कहत नटत…….सौं बात’ ।। तथा “कागद पर …………मेरे हिय की बात ।” आदि है।



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