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लेखक ने कुत्ते की स्वानिनिष्ठा को किन प्रसंगों द्वारा स्पष्ट किया है ?

Answer» रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी ज्यादातर शांतिनिकेतन में रहते थे। एक दिन अपनी अस्वस्थता के कारण वे शांतिनिकेतन से कुछ दूर स्थित श्रीनिकेतन में रहने गए। श्रीनिकेतन की ऊपरी मंजिल पर अस्तगामी सूर्य की ओर ध्यानस्तमित गुरुदेव के पास उनका ही पाला हुआ एक कुत्ता ऊपरी मंजिल तक चढ़कर आया और उनके पैरों के पास खड़ा होकर पूँछ हिलाने लगा। उसे देखकर आश्चर्यचकित होकर प्रेमपूर्ण भाव से गुरुदेव ने उस कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरा। वह आँखें मूँदकर अपने रोम-रोम से उस स्नेहरस का अनुभव करने लगा। गुरुदेव के आस्तित्व से तथा उनके प्रेम भरे स्पर्श से कुत्ते के चहरे पर परितृप्ति दिखाई दी। गुरुदेव का श्रीनिकेतन में आना, कुत्ते ने आश्चर्यपूर्ण तरीके से महसूस किया था, सिर्फ गुरुदेव के प्रति अपनी स्वामिनिष्ठा के कारण ही।
उस कुत्ते के बारे में टैगोर जी ने एक कविता लिखी। इसमें उन्होंने लिखा कि प्रतिदिन प्रातः काल वह कुत्ता उनके आसन के पास आकर बैठ जाता था। वह तब तक बैठा रहता, जब तक वे उसके शरीर पर हाथ न फेरते । गुरुदेव का प्रेम पाकर उसका अंग - अंग मानो आनंद से भर जाता। ऐसे लगता था कि जैसे उस मूक प्राणी ने गुरुदेव के भीतर की सहृदयता को पहचान लिया था। गुरुदेव कहते हैं कि वह लगता भले दीन हो, पर उसने यह पहचान लिया है कि उसके हृदय में गुरुदेव के प्रति बहुत प्रेमभाव है।
जब गुरुदेव को चिताभस्म आश्रम में लाया गया, तब न जाने किस सहजबोध से वह कुत्ता भी चिताभस्म के साथ अन्य लोगों के साथ शांत भाव से उत्तरायण तक गया था। वह उनके चिताभस्म के कलश के पास भी कुछ देर तक बैठा था।
इस प्रकार लेखक ने गुरुदेव के प्रति कुत्ते की स्वामिनिष्ठा व्यक्त की है।


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