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‘मानगढ़ का विशाल पहाड़ एक दिव्य बलिदान का साक्षी है।’ उस बलिदान की भयंकरता का उल्लेख कीजिए।

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लगभग एक शताब्दी पूर्व मानगढ़ पहाड़ के सघन वनांचल में वनवासी बन्धुओं ने एक व्यापक स्वाधीनता आन्दोलन का संचालन किया। यह अभियान इतना प्रभावी था कि अंग्रेज सरकार घबरा गई। इसे कुचलने का प्रयास किया गया। स्थानीय सामन्त-जागीरदार तो पहले से ही नाराज थे, ऊपर से उनके शत्रुओं ने भी कान भरने शुरू किये, जिसका परिणाम हुआ मानगढ़ हत्याकाण्ड। 17 नवम्बर, 1913 ई. को आयोजित राष्ट्रभक्तों के विशाल सम्मेलन में कर्नल शटल के एक आदेश पर लाखों वनबन्धुओं पर अन्धाधुन्ध गोलीबारी की, जिसके कारण 1,500 वनवासी मौत के घाट उतर गये। यह हत्याकाण्ड जलियाँवाला बाग से भी भयंकर था। यह बलिदान आज भी वनवासियों के गीतों और कथाओं से रचा-बसा है। इस पहाड़ पर चढ़ते समय आज भी रोमांच उत्पन्न हो जाता है।



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