1.

 मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।पाहन हों तो वही गिरि को जो कियो हरिछन पुरंदर धारन।जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कुल कदंब की डारन।।भावार्थ : कवि रसखान कहते हैं कि यदि मुझे मनुष्य का जन्म मिले तो मैं वही मनुष्य बनूँ, जिसे गोकुल गाँव के ग्वालों के साथ रहने का अवसर मिले। यदि मेरा जन्म पशु योनि में हो तो मैं उसी गाँव में जन्म लूँ, जहाँ मुझे नित्य नन्द की गायों के मध्य में विहार करने का सौभाग्य प्राप्त हो। यदि पत्थर के रूप में जन्म हो तो मैं उसी पर्वत का पत्थर बनें, जिसे श्रीकृष्ण ने इन्द्र का गर्व नष्ट करने के लिए उँगली पर धारण किया था। यदि मैं पक्षी योनि में जन्म लूँ तो मैं यमुना के किनारे स्थित कदंब की डाल पर बसेरा करूँ। यानी हर हाल में वह श्रीकृष्ण से जुड़ी यादों के समीप रहना चाहता है।1. मनुष्य के रूप में रसखान कहाँ जन्म लेना चाहते हैं ?2. कवि किस पर्वत का पत्थर बनना चाहता है ?3. पशु बनकर रसखान कहाँ रहना चाहते हैं ?4. पक्षी बनने पर रसखान कहाँ बसेरा करना चाहते हैं और क्यों ?5. निर्जीव रूप में रसखान ने क्या इच्छा प्रकट की है ?।6. ‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है ?

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1. मनुष्य के रूप में रसखान ब्रज के ही गाँव में जन्म लेना चाहते हैं।

2. कवि उस गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना चाहता है जिसे श्रीकृष्ण ने अपने हाथ पर उठाया था।

3. पश बनकर रसखान नंद की गायों के बीच रहना चाहते हैं।

4. पक्षी बनने पर रसखान यमुना किनारे कदंब की डाल पर बसेरा बनाना चाहते हैं, क्योंकि श्रीकृष्ण वहाँ अपने बालसखाओं के साथ कदंब की डाल पर क्रीडाएँ करते थे। उस वृक्ष के नीचे बैठकर श्रीकृष्ण बंशी बजाया करते थे। उस वृक्ष से उनकी यादें जुड़ी हुई हैं।

5. निर्जीव रूप में पुनर्जन्म होने पर कवि चाहता है कि वह उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बने, जिसे श्रीकृष्ण ने अपने हाथ पर उठाया था।

6. ‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ पंक्ति में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति हुई है, इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार है।



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