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मानव भूगोल को परिभाषित करते हुए इसकी प्रकृति को समझाइए।

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मानव भूगोल की परिभाषाएँ विद्वानों द्वारा मानव भूगोल को अग्र प्रकार से परिभाषित किया गया है

⦁    फ्रेडरिक रैटजेल के अनुसार, “मानव भूगोल मानव समाजों और धरातल के बीच सम्बन्धों का संश्लेषित अध्ययन है।”
⦁    कु० एलेन चर्चिल सैम्पल के अनुसार, “मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी और क्रियाशील मानव के बीच परिवर्तनशील सम्बन्धों का अध्ययन है।”
⦁    पॉल विडाल डी-ला ब्लाश के अनुसार, “हमारी पृथ्वी को नियन्त्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा इस पर रहने वाले जीवों के मध्य सम्बन्धों के अधिक संश्लेषित ज्ञान से उत्पन्न संकल्पना को मानव भूगोल कहते हैं।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के अनुसार, मानव भूगोल में यह अध्ययन किया जाता है कि भिन्न-भिन्न भौतिक दशाओं में मनुष्य का प्रत्युत्तर (Response) कैसा होता है? अथवा वह किस प्रकार प्रकृति से समायोजन या संघर्ष करके अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता है और उसे अपने लिए उपयोगी बनाता है। यह तभी सम्भव है जब थोड़ा मानव का प्राकृतीकरण हो और कुछ प्रकृति का मानवीकरण हो।

मानव भूगोल की प्रकृति

मानव भूगोल भौतिक पर्यावरण तथा मानव-जनित सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन उनकी परस्पर अन्योन्यक्रिया के द्वारा करता है। उल्लेखनीय है कि भू-आकृतियाँ, मृदाएँ, जल, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति, विविध प्राणिजात (Fauna), वनस्पतिजात (Flora), चट्टानें और खनिज भौतिक पर्यावरण के तत्त्व हैं। भौतिक पर्यावरण द्वारा प्रदत्त मंच पर मनुष्य अपने कार्यकलापों के द्वारा अपनी सुख-सुविधाओं और विकास के लिए कुछ लक्षणों को उत्पन्न करता है। घर, गाँव, खेत, नगर, नहरें, पुल, सड़कें, रेलमार्ग, कारखाने, बाँध, स्कूल, पत्तन और दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएँ ऐसे ही मानवीय लक्षण हैं। मानव निर्मित परिस्थितियों से ही मानव के सांस्कृतिक विकास की झलक मिलती है। मानव की सभी विकासात्मक गतिविधियों पर भौतिक वातावरण का भारी प्रभाव पड़ता है। इसीलिए मानव भौतिक परिवेश से व्यापक अनुकूलन करके ही सांस्कृतिक अथवा मानवीय परिवेश की रचना करता है। इसी तरह भौतिक पर्यावरण भी मानव द्वारा वृहत् स्तर पर परिवर्तित किया गया है।



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