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मानवाधिकार के सन्दर्भ में चुनौतियों और संभावनाओं की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।

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मानवाधिकार : चुनौतियाँ और सम्भावनाएँ
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। मानवाधिकारों की रक्षा करने में भारत की स्वतन्त्र न्यायपालिका एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। हाल के वर्षों में समाज के हाशिये के वर्गों के दावों के प्रति न्यायपालिका ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसके परिणामस्वरूप आज समाज के दुर्बल वर्ग; जैसे-महिलाएँ, बच्चे, पिछड़ी जातियाँ, जनजातियाँ और अन्य पिछड़े वर्ग अपने अधिकारों के प्रति अधिक सचेत हो गए हैं। प्राचीन भारतीय समाज की जाति-व्यवस्था में हाशिये के वर्गों; जैसे-महिलाएँ और बच्चों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं थे परन्तु आज यह वर्ग अपने आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए आंदोलनों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्र में शक्ति के बँटवारे के प्रति दृढ़-संकल्प हैं। भारतीय संविधान के समानता के अधिकार से सम्बन्धित अनुच्छेद ने सामाजिक व्यवस्था को एक गहरी चोट पहुंचाकर इस घटना में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण और उनके अधिकारों के हनन सम्बन्धी शिकायतों को देखता है, यह एक विधायी संस्था है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस दिशा के कार्यक्षेत्र में यौन उत्पीड़न के विरुद्ध संरक्षण के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश दिये हैं और अब अधीनस्थ न्यायालय लिंग सम्बन्धी भेदभाव को मानव अधिकारों के हनन के रूप में स्वीकार करते हैं। इसी प्रकार बाल-अधिकारों के संरक्षण के लिए “बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ बालकों के प्रति होने वाले अपराधों को नियन्त्रित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

मानव अधिकारों के सकारात्मक पहलू के साथ ही मानवाधिकारों का एक नकारात्मक पहलू भी है और हम इसकी अवहेलना नहीं कर सकते। आज सरकारों की यह प्रवृत्ति बन गई है कि वह प्रायः मुकदमों या याचिकाओं की आड़ में मानवाधिकारों की अवहेलना करती है। राज्य ने भारतीय पुलिस को अत्यधिक शक्तियाँ प्रदान की हैं। लोगों को मात्र संदेह के आधार पर हिरासत में लेना उन पर दमन की कठोर थर्ड डिग्री का प्रयोग करना, झूठी मुठभेड़, कारावास में मृत्यु इत्यादि कानून को लागू करवाने वाली संस्थाओं द्वारा मानव अधिकारों के हनन के गंभीर उदाहरण हैं। कानून की सीमा के अन्तर्गत आतंकवादी गतिविधियों पर रोक लगाने तथा उनसे निपटने के लिए पुलिस को आवश्यक शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। परन्तु TADA और POTA जैसे विध्वंसक कानूनों की आड़ में मानवाधिकारों का हनन किया जाता है जो एक अपूर्णीय क्षति है। अन्याय के माध्यम से यह निरंकुश कानून बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का स्रोत भी बन चुके हैं। कारावासीय हिंसा-जिसमें कारावास में मौत और महिलाओं का कारावासीय बलात्कार भी शामिल हैं-एक अन्य अमानवीय क्रूर और गैर-मानवीय व्यवहार है जो मानव अधिकारों के लिए गंभीर चुनौती है।



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