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“मैं अपने मन से बड़ा ही दुखी हूँ रघुनाथ।” तुलसीदास अपने मन से क्यों दुखी थे?

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तुलसीदास के शब्दों में संयम, जप, तप, नियम, धर्म, व्रत आदि सारी औषधियाँ करके मैं हार गया पर मेरा मन मेरे काबू में नहीं आया। आप ही कृपा करके उसे निरोग बना सकते हैं। इसलिए मैं दुखी हूँ।



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