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Answer» नर अर्थात् मनुष्य असीम शक्ति का भंडार है। वह जो कुछ मन मे ठान ले, उसे पूरा करने की ताकत उसमें है। पर, कई बार वह परिस्थितियों से संघर्ष करते-करते थक जाता है। उसमें निराशा का भाव आ जाता है और वह सोचने लगता है कि अब कभी आगे नहीं बढ़ पायेगा, किंतु यह स्थिति ठीक नहीं है। कहा भी गया है- ’नर हो, न निराश करो मन को।’ मनुष्य को मन में निराशा का भाव नहीं लाना चाहिए। अंग्रेजी में कहावत है- श्प् िजीमतम पे ं ूपससए जीमतम पे ं ूंलश् अर्थात, ’जहाँ चाहए वहाँ राह’।
विश्व का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब नेपोलियन ने सेना को कहा कि ’आल्प्स नहीं हैद्व और आल्प्स नहीं रहा। उसकी सेना ने आनन-फानन में आल्प्स पर्वत पार किया। वह कहा करता था- ’’असंभव शब्द मूर्खों के शब्दकोश में होता है।’’
जीवन में संघर्ष तो चलता ही रहता है और यह आवश्यक भी है। कवि जगदीश गुप्त ने जीवन संघर्ष को ही सच बताते हुए कहा है-
’’सच है महज संघर्ष हीः
संघर्ष से हटकर जिए तो क्या जिए,
हम या किस तुम
जो नत हुआ वह मृत हुआ
ज्यों वंृत से झरकर कुसुम’’
क्वयित्री महादेवी वर्मा ने भी कष्टों से टकरानक की प्रेरणा देेते हुए कहा है-
’’टकराएगा नहीं आज यदि उद्वत लहरों से,
कौन ज्वार फिर तुझे पार तक पहुँचाएगा?’’
हमें मन में कभी भी निराशा की भावना नहीं लानी चाहिए। हिम्मत के बलबुते पर हम अपने सभी कार्य सिद्व कर सकते हैं। निराशा में किया गया कार्य सदा गलत होता है। कहा भी गया है-
’’हारिए न हिम्मत, बिसारिए न हरिनाम’’
हरि अर्थात् प्रभु का नाम स्मरण भी हममें उत्साह का संचार करता है। इसमें हमें संबल प्राप्त होता है। विपत्तियाँ तो मनुष्य पर ही आती हैं। हमें उनसे टकराना है और अपनी राह खोजनी है। बनना-बिगड़ना सब चलता ही रहता है। आशावादी दृष्टिकोण अपनाने से सभी कार्य सफल होते हैं
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