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‘मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो ने कोई’-पद में मीरा के भक्ति-भाव पर प्रकाश डालिए।अथवा‘मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई’ -मीरा द्वारा रचित इस पद का सारांश लिखिए।

Answer»

कृष्ण की भक्ति में डूबी मीरा उन्हें ही अपना पति मानती हैं और कहती हैं कि उनके तो केवल गिरिधर गोपाल ही हैं, दूसरा कोई नहीं है। जिनके सिर पर मोर-मुकुट हैं वे ही उनके पति हैं। माता-पिता, भाई-बन्धु आदि इस संसार में कोई भी कृष्णु के सिवा उनका अपना नहीं है। उन्होंने कृष्ण-भक्ति में सबको त्याग दिया है। यहाँ तक कि अपने कुल को भी त्याग दिया है। लोग इसके लिए उन्हें क्या कहते हैं, इसकी चिन्ता भी उन्हें नहीं है। उन्होंने संत एवं साधुओं की संगति में बैठकर लोक-लज्जा का त्याग कर दिया है। उन्होंने आँसुओं से सींचकर जिस कृष्ण-भक्ति की बेल (लता) को बोया, वह अब फैलकर फल दे रही है। अब तो वे सांसारिकता को देखकर संसार के प्रति मनुष्य की अज्ञानता पर रोती हैं और जहाँ भक्ति देखती हैं वहाँ उनका मन प्रसन्न हो उठता है । मीरा कहती हैं-‘हे गिरिधर गोपाल ! मैं तुम्हारी दासी हूँ, अब तुम ही मेरा उद्धार करो।’



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