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महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्याएँ।प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि समाज नैतिक नियमों का पालन करे। कुछ ऐसा हुआ है कि राजनीतिशास्त्र के आचार्यों ने शायद प्रश्न के इस पहलू पर कभी विचार ही नहीं किया है। उनकी दृष्टि में ‘नीतिपरायण’ होना एक बात है और ‘राजनीति’ दूसरी। आप ‘राजनीति’ सीख सकते हैं, लेकिन ‘नीति’ के विषय में कोरे अज्ञानी बने रह सकते हैं, मानो ‘राजनीति’ बिना ‘नीति’ के ही सफल हो सकती हो। मुझे तो यह एक आश्चर्य में डालने वाली स्थापना मालूम देती

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कठिन शब्दार्थ-नैतिक = नीति सम्बन्धी। आचार्य = विद्वान। पहलू = प्रश्न। नीति-परायण = नीति के अनुसार चलने वाला। कोरे = पूर्णत:। स्थापना = मान्यता।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ”सफल प्रजातंत्रवाद के लिए आवश्यक बातें” शीर्षक पाठ से लिया गया है। यह डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा दिया गया एक भाषण है।

डॉ. अम्बेडकर एक विधि विज्ञानी थे। आपने प्रजातंत्रीय शासन व्यवस्था के लिए कुछ तत्वों को आवश्यक माना है। इनके बिना यह व्यवस्था सफल नहीं हो सकती। नागरिकों द्वारा नैतिक नियमों का पालन करना भी प्रजातंत्र की सफलता के लिए जरूरी है। नैतिकता के अभाव में राजनीति दुष्टों का खेल होना ही है।

व्याख्या-डॉ. अम्बेडकर बता रहे हैं कि प्रजातंत्रीय शासन व्यवस्था तभी सफल होती है, जब उसके नागरिक नीति सम्बन्धी नियमों का पालन करते हैं तथा उनका आचरण नीतिपूर्ण होता है। अनैतिक समाज में राजनीति भ्रष्ट हो जाती है तथा प्रजातंत्र नष्ट हो जाता है। यह विषय ऐसा है जिस पर राजनीति के विद्वानों ने बहुत ही कम सोच-विचार किया है। उनका मत है कि राजनीति में कुशल होना तथा नीतिवेत्ता होना दो अलग-अलग बातें हैं। चतुर राजनीतिज्ञ होने के लिए नीति का ज्ञान होना जरूरी नहीं है। राजनीति सीखने के लिए नीति की शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक नहीं है। नीति का ज्ञान न होने पर भी आप राजनीति सीख सकते हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि नीति को जाने बिना भी राजनीति सफल हो सकती है। डॉ. अम्बेडकर इस विचार से असहमत हैं। उनके दृष्टिकोण में यह मान्यता आश्चर्य में डालने वाली है। नीति ज्ञान के अभाव में कुशल राजनीति नहीं की जा सकती।

विशेष-
(i) अनेक लोग राजनीतिज्ञ होने के लिए नीतिज्ञ होना आवश्यक नहीं मानते।
(ii) डॉ. अम्बेडकर का मानना है कि नीति के अनुसार आचरण किए बिना अच्छी राजनीति सफल नहीं हो सकती।
(iii) भाषा सरल, विषयानुकूल तथा प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली विचारात्मक है।



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