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महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्याएँ।'सार्वजनिक अन्तरात्मा’ उस अन्तरात्मा को कह सकते हैं, कि जो हर अन्याय को देखकर विचलित हो उठती है। वह इस बात की परवाह नहीं करती कि उसे अन्याय का शिकार किसे होना पड़ रहा है? इसका मतलब हुआ कि चाहे उसे व्यक्तिगत रूप से उस ‘अन्याय’ से कष्ट होता हो, या न होता हो, जो कोई भी उस ‘अन्याय’ का भाजन हो उसे उस ‘अन्याय’ से मुक्ति दिलाने के लिए उसके कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो जाती है।

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कठिन शब्दार्थ-सार्वजनिक = सभी लोगों से सम्बन्धित। अन्तरात्मा = भीतरी अर्थात् मन की आवाज। विचलित = व्याकुल। परवाह = चिन्ता। भाजन = पात्र, शिकार। मुक्ति = छुटकारा। कंधा से कंधे मिलाकर खड़े होना = सबका सहयोग करना।।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ”सफल प्रजातंत्रवाद के लिए आवश्यक बातें” शीर्षक पाठ से लिया गया है। यह डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा दिया गया एक भाषण है।

इस भाषण में डॉ. अम्बेडकर ने प्रजातंत्र की सफलता पर विचार किया है तथा उसके लिए कुछ बातों को आवश्यक माना है। इनके बिना प्रजातंत्र असफल हो जाता है। उनमें एक बात सार्वजनिक अन्तरात्मा भी है। व्याख्या-डॉ. अम्बेडकर कहते हैं कि सार्वजनिक अन्तरात्मा प्रजातंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है। सार्वजनिक अंतरात्मा का अर्थ बिना भेदभाव के किसी अत्याचार के विरुद्ध एकमत होना है। सार्वजनिक का अर्थ ‘सभी लोगों से संबंधित है। जब समाज के सभी सदस्य, जाति, धर्म, वर्ग आदि का अन्तर भुलाकर किसी अन्याय के विरुद्ध एकमत होकर उठे खड़े होते हैं, तो अंबेडकर के अनुसार इसको सार्वजनिक अन्तरात्मा कहते हैं। इसके तहत लोग अन्याय को देखकर व्याकुल हो जाते हैं। वे यह नहीं देखते कि अन्याय कौन कर रहा है तथा उसका शिकार कौन हो रहा है उस अन्याय से व्यक्तिगत कष्ट होने अथवा न होने पर भी अन्याय का शिकार हुए मनुष्य को अन्याय से बचाने के लिए भेदभाव मुक्त होकर उसके साथ खड़े हो जाना ही सार्वजनिक अन्तरात्मा है।

विशेष-
(i) सफल प्रजातन्त्र के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक नागरिक अन्याय का सभी मतभेद भुलाकर विरोध करे भले ही वह स्वयं उससे प्रभावित न हो रहा हो।
(ii) भेदभाव मुक्त सार्वजनिक प्रतिरोध से ही प्रजातन्त्र की रक्षा हो सकती है।
(iii) भाषा बोधगम्य तथा विषय के अनुरूप है।
(iv) शैली विचारात्मक है।



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