1.

मीरा के काव्य में व्यक्त भक्ति एवं रहस्यवाद का परिचय दीजिए।

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1.भक्तिमीरा की भक्ति प्रेम प्रधान है। उनका कृष्ण राममय और राम कृष्णमय हैं, अर्थात् दोनों ही एक हैं। राम भी कृष्ण ही हैं। भावों की तीव्रता में कोमलता और मधुरता इनकी भक्ति की विशेषता है। वे गोपियों के समान कृष्ण के प्रति माधुर्य भक्ति से प्रेरित हैं। वे कृष्ण के रंग में रंग कर कहती हैं

‘‘मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई॥

2.रहस्यवाद- मीरा के काव्य में जिस रहस्यवाद के दर्शन होते हैं, उसमें दाम्पत्य प्रेम की प्रधानता है। वे कहती हैं

जिनका पिया परदेश बसत है, लिख-लिख भेजत पाती।
मेरा पिया हृदय बसत है, ना कहुं आती जाती।”



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