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मिट्टी का कटाव रोकने के लिए पशु चराई पर नियन्त्रण एवं वन क्षेत्र में विस्तार महत्त्वपूर्ण | उपाय हैं। स्पष्ट कीजिए।

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मिट्टी कटाव रोकने हेतु पशु सम्बन्धी उपाय

1. चराई पर नियन्त्रण–पशुओं के अनियमित रूप से चरने पर प्रतिबन्ध होना चाहिए। पशुओं द्वारा घास के चरने से किसी भी स्थान की मिट्टी कठोर हो जाती है; अत: बीज अंकुरण के योग्य नहीं रहती। इसके अतिरिक्त जानवर छोटे-छोटे पौधों को रौंद डालते हैं, उनकी शाखाएँ तोड़ते हैं तथा अनेक पौधों को जड़ से उखाड़ देते हैं। नहरों के किनारे पर पशुओं के चरने पर प्रतिबन्ध हों। चाहिए, क्योंकि पशुओं के खुरों से उखड़ने वाली मिट्टी का तेजी से अपरदन हो जाता है।
2. चरागाहों का प्रबन्ध–पशुओं को चरने के लिए अलग से चरागाहों की व्यवस्था होनी चाहिए। ग्राम-समाज की खाली भूमि को चरागाहों में बदलकर उसमें उन्नत किस्म की घास बोनी चाहिए।

मिट्टी के कटाव रोकने हेतु वन सम्बन्धी उपाय,

1. वनों के कटान पर प्रतिबन्ध-मनुष्य अपनी दैनिक आवश्यकताओं (जैसे-रहने के लिए स्थान, फर्नीचर, ईंधन, कागज, दवाइयाँ आदि) की पूर्ति हेतु वनों को काटता जा रहा है। वनों के कटाव से किसी भी क्षेत्र की मिट्टी ढीली हो जाती है। मूसलाधार वर्षा बाढ़ लाती है और भूस्खलन भी होता है। वनों को काटने से समय पर वर्षा नहीं होती; अत: वनों के अनियमित रूप से कटान
पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।

2. वृक्षारोपण तथा पुनः वनरोपण-वनों के काटने से पहले नए वनों की स्थापना करनी चाहिए, जिससे मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे। खाली स्थानों पर वृक्ष लगाए जाने चाहिए।
इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर ‘वन महोत्सव मनाया जाता है।

3. बालू के बन्धकों को उगाना-पौधों की जड़ों में किसी भी स्थान की मिट्टी को जकड़े रखने की क्षमता होती है। कुछ पौधों में यह क्षमता बहुत अधिक होती है; जैसे-सैकरम मुंजा (Saccharum Munja), सैकरम स्पॉण्टेनियम (S. Spontaneum), साइनोडर्न डेक्टाइलोन (Cymodon Dactylon), इण्डिगोफेरा कॉर्डिफोलिया (Indigofera Cordifolia) आदि। अत: ऐसी प्रजातियों के वृक्षो को नहरों के किनारों पर लगाना चाहिए।



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