1.

मृदा जल को पारिभाषित करते हुए उसके विभिन्न रूपों का विस्तार से वर्णन कीजिए।

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मृदा जल तीन प्रकार के होते हैं-

  1. गुरुत्वीय जल
  2. केशिका जल,
  3. आर्द्रताग्राही जल

(i) गुरुत्वीय जल- मिट्टी के रंधावकाश में पानी भरने के बाद बाकी जल को रोकने की शक्ति मृदा में नहीं होती और वह जल पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण नीचे चला जाता है। यह जल पौधों के लिए अप्राप्य होता है। इसे गुरुत्वीय जल या स्वतंत्र जल कहते हैं।

(ii) केशिका जल- गुरुत्वाकर्षण बल के विरुद्ध पर्याप्त जल मिट्टी के रंध्रावकाश में रुका रहता है जिसे केशिका जल कहते हैं। यह जल विलयन के रूप में सुगमता से पौधों को प्राप्त होता है।

(iii) आर्द्रताग्राही जल- मिट्टी में कुछ जल ऐसा भी होता है, जो मृदा कणों के मध्य इतनी मजबूती से एक महीन परत के रूप में जकड़ा रहता है कि पौधों को प्राप्त नहीं होता। इस जल को आर्द्रताग्राही जल कहते हैं। सिंचाई के जल का कम भाग ही पौधों को मिल पाता है। उसका अधिकांश भाग रिसाव द्वारा बेकार चला जाता है और गुरुत्वीय जल या आर्द्रताग्राही जल के रूप में पौधों को अप्राप्य होता है।



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