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मृगतृष्णा किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?Give me the most easiest answer in your own words​

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HI,

गर्मी की चिलचिलाती धूप में दूर रेगिस्तान में सूर्य की किरणों द्वारा उत्पन्न चमक से वहां पर पानी होने का अहसास होता है परन्तु होता कुछ नहीं। गर्मी में प्यास से व्याकुल मृग जल के आभास मात्र को यथार्थ समझ उसके पीछे भागता रहता है। वहाँ जाकर देखने से उसे कुछ नहीं मिलता। प्रकृति के इस भ्रामक रूप को ही मृग तृष्णा कहा जाता है। कविता में मृग तृष्णा शब्द मृग के लिए न होकर मानव के लिए प्रयुक्त हुआ है। मानव भी इस तृष्णा में फसकर अयथार्थ को यथार्थ मानकर मृग की तरह यश, वैभव, सम्मान जैसी मृगतृष्णा के लिए जीवन भर भटकता रहता है। इस भटकाव में मनुष्य जीवन भर परेशान रहता है।

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