InterviewSolution
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                                    नागा जनजाति के निवास-क्षेत्र एवं अर्थव्यवस्था का वर्णन कीजिए। यानागा जनजाति के निवास-क्षेत्र और आर्थिक क्रियाकलाप का वर्णन कीजिए।याटिप्पणी लिखिए-नागा जनजाति। | 
                            
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Answer»  नागा Nagas यह जनजाति मुख्यत: भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित नागालैण्ड राज्य में निवास करती है। नागा राष्ट्र की उत्पत्ति कुछ विद्वानों के अनुसार संस्कृत में प्रचलित ‘नग’ (पर्वत) शब्द से हुई। डॉ० एल्विन के मतानुसार, नागा की उत्पत्ति नाक अथवा लोंग से हुई। ये इण्डो-मंगोलॉयड प्रजाति से सम्बन्ध रखते हैं। निवास-क्षेत्र – नागा जाति का मुख्य निवास-क्षेत्र नागालैण्ड है। पटकोई पहाड़ियों, मणिपुर के पठारी भाग, असम व अरुणाचल प्रदेश में भी कुछ नागा वर्ग निवास करते हैं। शारीरिक लक्षण – नागाओं के शारीरिक लक्षणों में मंगोलॉयड तत्त्व की अधिकता है, किन्तु डॉ० हट्टन इन्हें ऑस्ट्रेलॉयड मानते हैं। इनकी त्वचा का वर्ण हल्के पीले से गहरा भूरा, बाल काले व सुंघराले तथा लहरदार, आँखें गहरी भूरी, गालों की हड्डियाँ उभरी हुईं, सिर मध्यम चौड़ा, नाक मध्यम चौड़ी, कद मध्यम व छोटा होता है। नागाओं के अनेक उपवर्ग पाये जाते हैं। नागाओं के पाँच बड़े उपवर्ग निम्नवत् हैं – ⦁    उत्तरी क्षेत्र में रंगपण व कोन्याक नागा; निवास – अधिकांश नागा पाँच-सात झोंपड़े बनाकर ग्रामों में रहते हैं। एक ग्राम में एक कुटुम्ब ही निवास करता है। झोंपड़ियों का निर्माण करने के लिए यहाँ के वनों में उगने वाले बाँस एवं लकड़ी का प्रयोग अधिक किया जाता है। नागा लोग अपने गृहों का निर्माण ऊँचे भागों में करते हैं, जहाँ वर्षा के जल से रक्षा हो सके। ये लोग अपने घरों को हथियारों एवं नरमुण्डों से सजाते हैं। सामान्यतः एक गाँव में 200 से 250 मकान तक होते हैं। एक मकान में बहुधा दो छप्पर होते हैं। भोजन – चावले नागाओं का प्रिय भोजन है, परन्तु यह कम मात्रा में प्राप्त होता है। इसी कारण ये लोग शिकार एवं जंगलों से प्राप्त होने वाले कन्दमूल-फल आदि पर निर्भर करते हैं। नागा लोग बकरी, गाय, बैल, साँप, मेंढक आदि का मांस खाते हैं। चावल से निकाली गयी शराब का उपयोग विशेष उत्सवों पर करते हैं। भोजन के सम्बन्ध में इनके यहाँ कुछ निषेध भी हैं; जैसे–मारम नागाओं में सूअर का मांस खाना वर्जित है, जबकि तेंडुल नागा बकरी के मांस का सेवन नहीं करते। बिल्ली का मांस सभी के लिए वर्जित है। कपड़ा-बुनकर नागाओं में नर-पशु का मांस कुंआरी लड़कियों को नहीं परोसा जाता। नागा लोग बिना दूध की चाय का सेवन करते हैं। 1. आखेट – पहाड़ी एवं मैदानी नागाओं की शिकार करने की विधियाँ भिन्न-भिन्न हैं। जंगली पशुओं को खदेड़कर नदी-घाटियों में लाकर भालों से उन्हें मारना सभी नागाओं में प्रचलित है। शिकार करने के लिए ये तीरकमान, भालों, दाव आदि का प्रयोग करते हैं। विष लगे तीरों का प्रयोग करना मणिपुर के मारम नागाओं में प्रचलित है। आखेट के नियमों का पालन सभी नागा कठोरता से करते हैं। 2. मछली पकड़ना – मछली पकड़ने का कार्य पर्वतों के निचले भागों, नदियों एवं तालाबों के किनारे जालों, टोकरों एवं भालों की सहायता से किया जाता है। 3. कृषि-कार्य – मणिपुर एवं नागा पहाड़ियों में निवास करने वाली आदिम नागी जाति ने। पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि-कार्य में काफी प्रगति कर ली है, परन्तु उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्रों में झूमिंग पद्धति से कृषि की जाती है, अर्थात् वनों को आग लगाकर साफ करे प्राप्त की गयी भूमि पर, दो या तीन वर्षों तक खेती की जाती है, फिर इसे परती छोड़ दिया जाता है। ये लोग बाग भी लगाते हैं। यहाँ पर प्रमुख फसलें धान, मॅडवा, कोट तथा मोटे अनाज हैं। चाय की झाड़ियाँ प्राकृतिक रूप से उगती हैं। कुछ भागों में कपास भी उगायी जाती है। 4. कुटीर उद्योग-धन्धे – उत्तरी-पूर्वी भारत की अधिकांश आदिम जातियों में छोटे करघों पर बुनाई की कला उन्नत अवस्था में है। यहाँ मुख्य रूप से मोटा कपड़ा बुना जाता है। नागाओं द्वारा मिट्टी के बर्तन भी तैयार किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त सभी नागा टोकरियाँ एवं चटाई बनाने का व्यवसाय करते हैं। लोहार द्वारा गाँव में ही शिकार के लिए औजार तथा कृषि के उपकरण बनाये जाते हैं। नागा लोग टोकरियाँ, चटाइयाँ, मछली, पशु, लकड़ी का कोयला आदि वस्तुओं का व्यापार करते हैं। धार्मिक विश्वास – नागाओं का विश्वास है कि खेतों, पेड़ों, नदियों, पहाड़ियों, भूत-प्रेतों आदि विभिन्न रूपों में आत्माएँ पायी जाती हैं। आत्मा की शक्ति क्षीण होने पर बाढ़, दुर्भिक्ष, तूफान, बीमारियों आदि के प्राकृतिक प्रकोप होते हैं। फसलें नष्ट हो जाती हैं, स्त्रियों में बाँझपन होता है, पशु नष्ट हो जाते हैं, शिकार उपलब्ध नहीं होता। अतएव आत्मा की तुष्टि के लिए पशु बलि, मदिरा, मछली आदि की भेंट चढ़ाई जाती है। जादू-टोने में इनका बहुत विश्वास है। ईसाई मिशनरियों के सम्पर्क में आने से अधिकांश नागाओं ने ईसाई धर्म अपना लिया।  | 
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