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नि:संक्रमण का क्या आशय है? निःसंक्रमण की भौतिक विधियों का सविस्तार वर्णन कीजिए।अथवानि:संक्रमण से आप क्या समझते हैं? नि:संक्रमण की प्राकृतिक विधि लिखिए।अथवानिःसंक्रमण से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।अथवाटिप्पणी लिखिए–भौतिक निःसंक्रमण। 

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निःसंक्रमण का अर्थ

संक्रामक रोगों का कारण विभिन्न प्रकार के रोगाणु होते हैं। इन रोगाणुओं द्वारा रोग के प्रसार की प्रक्रिया ‘संक्रामकता’ कहलाती है। रोगों के उद्भवन एवं प्रसार को रोकने का सर्वोत्तम उपाय-सम्बन्धी रोगाणुओं को नष्ट करना तथा इन्हें बढ़ने से रोकना है। रोगाणुओं को नष्ट करने की प्रक्रिया को ही नि:संक्रमण (Disinfection) कहा जाता है। नि:संक्रमण की इस प्रक्रिया में प्रयुक्त पदार्थ नि:संक्रामक पदार्थ’ कहलाते हैं।

निःसंक्रमण की विधियाँ

नि:संक्रमण के लिए सामान्यतः तीन विधियों-भौतिक, प्राकृतिक एवं रासायनिक का प्रयोग किया जाता है। इन विधियों का सामान्य विवरण निम्नलिखित है।
भौतिक नि:संक्रमण

⦁    जलाना
⦁    वाष्प या भाप द्वारा
⦁    सूखी गर्म हवा द्वारा
⦁    उबालना

1. भौतिक निःसंक्रमण

इसके अन्तर्गत भौतिक उपायों द्वारा वस्तुओं को रोगाणुमुक्त किया जाता है। नि:संक्रमण हेतु निम्नलिखित चार भौतिक विधियों का प्रयोग किया जाता है।

(i) जलाना व्यर्थ एवं अनुपयोगी संक्रमित वस्तुओं को आग में जलाना श्रेयस्कर होता है। इस क्रिया से कीटाणुओं का पूर्ण नाश सम्भव होता है। यद्यपि इसके अन्तर्गत सभी संक्रमित वस्तुओं को जलाना सम्भव नहीं होता है कारण कि कुछ वस्तुओं को जलाने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जो स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

(ii) वाष्प या भाप द्वारा वाष्प द्वारा। नि:संक्रमण भी एक उत्तम विधि है।  इससे वस्त्रों एवं अन्य वस्तुओं को नि:संक्रमित किया जा सकता है। इससे  कुछ ही समय में कीटाणु मर जाते हैं। यह विधि अस्पतालों में प्रयोग में लाई जाती है।

(iii) सूखी गर्म हवा द्वारा यह विधि अत्यधिक प्रभावी नहीं है। अतः यह कम प्रयोग में लाई जाती है यद्यपि चमड़े, शीशे, प्लास्टिक के बर्तन तथा रबड़ की वस्तुओं आदि के नि:संक्रमण में इसका उपयोग किया जाता है, क्योंकि ये वस्तुएँ अन्य प्रकार से नि:संक्रमित नहीं की जा सकती।

(iv) उबालना जिन संक्रमित वस्तुओं को नष्ट करना सम्भव नहीं है, उन्हें खौलते हुए पानी में (100° C पर) 20 से 30 मिनट तक उबालकर कीटाणुमुक्त किया जा सकता है। यदि उबलते जल में 2% सोडियम कार्बोनेट मिला दिया जाए, तो इसकी कीटाणुनाशक क्षमता और अधिक बढ़ जाती है। उबलते हुए जल में धातु के बर्तन भी नि:संक्रमित किए जा सकते हैं।

2. प्राकृतिक निःसंक्रमण

प्राकृतिक रूप से हमारे चारों ओर अनेक नि:संक्रामक कारक मौजूद रहते हैं। उदाहरणत: सूर्य से उत्सर्जित होने वाली पराबैंगनी किरणें बहुत ही सक्रिय कीटाणुनाशक हैं। जल शुद्धि में इनका उपयोग सर्वविदित है। सूर्य के प्रकाश की किरणों की गर्मी से भी अनेक रोगाणु मर जाते हैं। अत: वस्तुओं को समय समय पर धूप दिखाना आवश्यक है। इसी प्रकार शुद्ध वायु का अन्तर्ग्रहण भी शरीर के लिए लाभदायक है, क्योंकि ऑक्सीजन जीवाणुओं को नष्ट करने में सहायक होती है।



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