1.

निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट करो-रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।रहिमन फिरि-फिरि पोहिए टूटे मुक्ताहार॥

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सौ बार रूठने पर भी सज्जनों को उसी तरह मना लेना चाहिए, जिस तरह, टूटे हुए हार के मोतियों को बार-बार पिरो लिया जाता है।



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