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निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए(क) शुष्क मृदा, (ख) लवण मृदा, (ग) पीटमय मृदा, (घ) वन मृदा।

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(क) शुष्क मृदा

शुष्क मृदाओं का रंग लाल से लेकर किशमिशी तक होता है। यह मिट्टी संरचना की दृष्टि से बलुई और प्रकृति से लवणीय होती है। कुछ क्षेत्रों में इसमें नमक की मात्रा बहुत अधिक होती है, इसलिए मिट्टी को वाष्पीकृत करके नमक प्राप्त किया जाता है। शुष्क जलवायु, उच्च तापमान और तीव्र गति से वाष्पीकरण के कारण इस मृदा में नमी और ह्यूमस कम होते हैं। इसमें नाइट्रोजन अपर्याप्त और फॉस्फेट सामान्य मात्रा में होता है। नीचे की ओर चूने की मात्रा के बढ़ते जाने के कारण निचले संस्तरों में कंकड़ों की परतें पाई जाती हैं। मृदा के निम्न संस्तर में कंकड़ों की परत बनने के कारण पानी का रिसाव सीमित हो जाता है। यह मृदा विशिष्ट शुष्क स्थलाकृति वाले पश्चिमी राजस्थान में अभिलाक्षणिक रूप से विकसित हुई है। यह मृदा अनुर्वर है, क्योंकि इनमें ह्यूमस और जैव पदार्थ कम मात्रा में पाए जाते हैं।

(ख) लवण मृदा 
मरुस्थलीय क्षेत्रों में वर्षा की कमी के कारण ऊसर, रॉकड, थुर तथा कल्लर जैसी अनुर्वर मिट्टियाँ पाई जाती हैं। ये मिट्टियाँ लवण एवं क्षारीय गुणों से युक्त होती हैं। इसलिए इनको लवण मृदा कहते हैं। इस मिट्टी में सोडियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम तत्त्वों की प्रधानता होती है, जिससे यह अनुपजाऊ हो गई है। इसमें नमी एवं वनस्पति के अंश नहीं पाए जाते हैं। इनमें सिंचाई कर केवल मोटे अनाज, मूंगफली व दलहन ही उगाए जाते हैं। यह मिट्टी सरन्ध्र होती है। यह मिट्टी कोमल एवं प्रवेश्य होती है। इसमें बालू के ढेर दिखाई पड़ते हैं। इस मिट्टी का विस्तार 1.14 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर मिलता है। मरुस्थलीय मिट्टी पश्चिमी राजस्थान, उत्तरी गुजरात, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा दक्षिणी पंजाब एवं दक्षिण-पश्चिमी हरियाणा राज्यों में पाई जाती है। इस मृदा में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं
⦁    इस मिट्टी में बालू के मोटे कणों की प्रधानता होती है।
⦁    इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता अत्यधिक कम होती है।
⦁    यह मिट्टी अपेक्षाकृत अनुपजाऊ होती है।
⦁    इस मिट्टी में जल गहराई तक प्रवेश कर जाता है।
⦁    इस मिट्टी को जल की अधिक आवश्यकता होती है।
⦁    आर्थिक दृष्टि से मरुस्थलीय मिट्टी उपयोगी नहीं होती, परन्तु इसमें सिंचाई द्वारा मोटे अनाज ऋगाए जा सकते हैं।

(ग) पीटमय मृदा

यह मृदा भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता से युक्त उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहाँ वनस्पति की वृद्धि अच्छी हो। अत: इन क्षेत्रों में मृत जैव पदार्थ बड़ी मात्रा में इकट्ठे हो जाते हैं, जो मृदा को ह्युमस और जैव तत्त्व पर्याप्त मात्रा में प्रदान करते हैं। इस मृदा में जैव तत्त्व 40 से 50 प्रतिशत तक होते हैं। यह मृदा सामान्यत: गाढे काले रंग की होती है। अनेक स्थानों पर यह क्षारीय भी है। यह मृदा मुख्यतः बिहार के उत्तरी भाग, उत्तराखण्ड के दक्षिणी भाग, पश्चिम बंगाल के तटीय क्षेत्रों, ओडिशा और तमिलनाडु में पाई जाती है।

(घ) वन मृदा
वन मृदा पर्याप्त वर्षा वाले वन क्षेत्रों में बनती है। इसके लिए पर्वतीय पर्यावरण अनुकूल क्षेत्र है। इस पर्यावरण में परिवर्तन के अनुसार मृदाओं का गठन और संरचना बदलती रहती है। घाटियों में यह दुमटी और पांशु होती है तथा ऊपरी ढालों पर यह मोटे कणों वाली होती है। अपने प्राकृतिक गुणों व गठन के कारण फसलों, पौधों और वनस्पति की वृद्धि के लिए यह मिट्टी सर्वोत्तम होती है।



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