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नर सुलतान नाम के राजकुमार का परिचय दीजिए।

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भारत में प्रजा नर सुलतान नाम के राजकुमार के गीत गाये जाते हैं। जिसमें सुलतान बुरे दिनों में नरवर गढ़ में रहकर समय व्यतीत किया। वहाँ उसने चौकीदारी से लेकर ऊँचे पद पर भी रहा। जिस दिन घोड़े पर सवार होकर वह उस नगर से विदा हुआ, नगर-द्वार से बाहर आकर उस नगर को जिस रीति से उसने अभिवादन किया वह अनुकरणीय है।

उसने कहा – ‘प्यारे नरवर गढ़ ! मेरा प्रणाम ले ! आज मैं तुझसे जुदा होता हूँ। तू मेरा अन्नदाता है। अपनी विपद के दिन मैंने तुझमें काटे हैं। तेरे ऋण का बदला मैं गरीब सिपाही नहीं दे सकता। भाई नरवर गढ़। यदि मैंने जानबूझकर एक दिन भी अपनी सेवा में चूक की हो, यहाँ की प्रजा की शुभ चिंता न की हो, यहाँ की स्त्रियों को माता और बहन की दृष्टि से न देखा हो तो मेरा प्रणाम न ले, नहीं तो प्रसन्न होकर एक बार मेरा प्रणाम ले और मुझे जाने की आज़ा दे।’

इस प्रकार नर सुलतान अपनी उस भूमि के प्रति कृतज्ञता दिखाता है जिसने उसे विपद के समय में सहारा दिया। उसका ऋण स्वीकार किया। उसे प्रणाम किया। अर्थात् ऐसे गुण शासक में होना चाहिए, जो लॉर्ड कर्जन में नहीं हैं।



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