1.

पद का भावार्थ लिखें:मानुष हों, तो वही रसखानि बसौ ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।जो पसु हौं, तो कहा बसु मेरो, चरौ नित नंद की धेनु मॅझारन॥पाहन हौं, तो वही गिरि कौ, जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।जो खग हौं, बसेरो करौं मिलि कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन ॥१॥

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भावार्थ : रसखान इस सवैये में ब्रज में ही जन्म लेने के लिए तथा ब्रज से ही जुड़े रहने के लिए अपनी इच्छा प्रकट कर रहे हैं। वे कहते हैं कि यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य बनकर आऊँ, तो ब्रज के गोकुल गाँव में ग्वाला बनकर ही आऊँ। लेकिन मेरे बस की बात नहीं यदि पशु बनूँ, तो नंदबाबा की गौओं के बीच में कोई गाय बनूँ। यदि पत्थर ही बन जाऊँ, तो वही गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ, जिसे कृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से ब्रज वासियों की रक्षा के लिए उठाया था। यदि मैं पक्षी के रूप में जन्म लूँ, तो कालिंदी नदी (यमुना नदी) के किनारे रहने वाले कदंब वृक्षों की डालियों पर रहने वाले पक्षियों में मेरा बसेरा हो। तात्पर्य यह है कि कवि रसखान को ब्रजभूमि से इतना लगाव है कि किसी भी हालत में, किसी भी रूप में वे ब्रजभूमि में जन्म लेना चाहते हैं।



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