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पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ।मथत-मथत माखन रहै, दही मही बिलगाय।।रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय।।

Answer»

कठिन शब्दार्थ – मथत-मथत = बार-बार दही बिलौना। माखन = मक्खन। बिलगाय = अलग हो जाता है। सोई = वही। मीत = मित्र। भीर परे = कठिन समय आने पर। ठहराय = साथ रहे।

सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहे’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। कवि ने इस दोहे में सच्चे मित्र की पहचान बताई है।

व्याख्या – कविवर रहीम कहते हैं कि सच्चा मित्र सदा संकट में साथ निभाता है। सच्चे मित्र की पहचान यही है कि वह संकट आने पर कभी अपने मित्र का साथ नहीं छोड़ता। जिस प्रकार दही को बार-बार बिलोया जाता है तो दही और मट्ठा तो अलग हो जाते हैं किन्तु मक्खन वहीं स्थिर रहता है। तात्पर्य यह है कि सच्चा मित्र मक्खन की तरह अपने मित्र के सदा साथ रहता है।

विशेष –

  1. सरल, सरस, मधुर ब्रजभाषा है।
  2. दोहा छंद है।
  3. ‘मथत मथत माखन’ में अनुप्रास अलंकार है। दृष्टान्त अलंकार भी है।
  4. ‘भीर परे’ मुहावरे का प्रयोग है।
  5. सच्चे मित्र की पहचान बताई गई है कि वह मुसीबत के समय अपने मित्र का साथ नहीं छोड़ता।


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