InterviewSolution
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पीछे हटते हुए मानसून की ऋतु में मौसम की विभिन्न दशाओं तथा वर्षा के वितरण का वर्णन कीजिए। |
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Answer» अक्टूबर और नवम्बर के महीने में भारत में पीछे हटते हुए मानसून की ऋतु पायी जाती है। इस ऋतु में मानसून का निम्न वायुदाब का गर्त कमजोर पड़ जाता है और इसका स्थान उच्च वायुदाब ले लेता है। परिणामस्वरूप मानसून पीछे हटने लगता है। इस समय तक इन पवनों में आर्द्रता की मात्रा पर्याप्त कम हो चुकी होती है। अत: इसके द्वारा बहुत कम वर्षा होती है। भारतीय भू-भागों पर इसका प्रभाव-क्षेत्र सिकुड़ने लगता है। और पृष्ठीय पवनों की दिशा उलटनी शुरू हो जाती है। अक्टूबर तक मानसून उत्तरी मैदानों से पीछे हट जाता है। अक्टूबर-नवम्बर के दो महीने, एक संक्रान्ति काल है। इस काल में वर्षा ऋतु के स्थान पर शुष्क ऋतु का आगमन प्रारम्भ हो जाता है। मानसून के हटने से आकाश साफ हो जाता है और तापमान फिर से बदलने लगता है। परन्तु भूमि अभी भी आर्द्र बनी रहती है। उच्च तापमान तथा आर्द्रता के कारण मौसम कष्टदायक हो जाता है। इस कष्टदायक मौसम को ‘क्वार की उमस’ कहते हैं। अक्टूबर के उत्तरार्द्ध में मौसम बदलने लगता है और विशेषकर उत्तरी मैदानों में तापमान तेजी से गिरने लगता है। नवम्बर के प्रारम्भ में उत्तर-पश्चिमी भारत के निम्न वायुदाब का क्षेत्र बंगाल की खाड़ी की ओर खिसक जाता है। इस अवधि में अण्डमान सागर में चक्रवात बनने लगते हैं। इनमें से कुछ चक्रवात दक्षिणी प्रायद्वीप के पूर्वी तटों को पार कर जाते हैं और इन क्षेत्रों में भारी तथा व्यापक वर्षा करते हैं। ये उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात अधिकतर गोदावरी, कृष्णा और कावेरी के डेल्टाई प्रदेशों में ही आते हैं। ये बहुत ही विनाशकारी होते हैं। कोई भी वर्ष इनकी विनाशलीला से खाली नहीं जाता। कभी-कभी ये चक्रवात सुन्दरवन और बांग्लादेश में भी पहुँच जाते हैं। कोरोमण्डल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों और अवदाबों के कारण होती है। |
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