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इस कहानी के आखिर में लेखिका ने लिखा है, “जगह-जगह पानी से लब-लब करते, सुनसान शहर में, निचाट अकेले, अपनी धुन में, मंजिल की तरफ चलते चले जाना। सच, अकेलेपन का मजा ही कुछ और है।“

मनुष्य एक सामाजिक प्राणि है और इसलिए अकेले नहीं रहता है। लेकिन कुछ व्यक्ति भीड़भाड़ के कोलाहल में इतना अकेलापन ढ़ूँढ़ लेते हैं कि अपने मन की कर सकें। लेखिका की बहन वही करती थीं, जो उन्हें सही लगता था। ऐसा करने में वे अन्य लोगों की बातों को भी अनसुनी कर जाती थीं। स्कूल की बस स्टॉप से उनका अकेले पैदल आना या फिर बारिश के बाद पैदल ही स्कूल चले जाना; इसका उदाहरण है।



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