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‘परदे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे खबर नहीं !’ से क्या आशय है ? समझाइए।

Answer»

बालमुकुंद गुप्त द्वारा लिखित शिवशंभु के चिट्ठ का अंश ‘विदाई संभाषण’ की यहाँ पंक्तियाँ दी गई है। जिसमें तीसरी शक्ति की महत्ता को स्थापित किया है। जब लॉर्ड कर्जन ने भारत में आकर शानो-शौकत से शासन किया। लेकिन भारत में अशांति और कौंसिल में बेकानूनी कानून पास करते और कनवोकेशन अभिभाषण देते समय बुद्धि का दीवालिा निकाल दिया।

परिणामस्वरूप उन्हें भारत से इस्तीफा देना पड़ा जब ये वापस जा रहे थे। तब लेखक लॉर्ड कर्जन के विदाई संभाषण में उन्हें संबोधित करते हुए कहते हैं आप जा रहे हैं इसमें नया कुछ भी नहीं है। आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत में उनको जाना पड़ा। परंतु यह तो परंपरा है। परंतु आपके शासन काल का नाटक घोर दुखांत है।

और आश्चर्य इस बात का है कि दर्शक तो क्या स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जायेगा। जिसके आदि में सुख था, मध्य में सीमा से बाहर सुख था, उसका अंत ऐसे घोर दुःख के साथ कैसे हुआ ? आह ! घमंडी खिलाड़ी समझता है कि दूसरों को अपनी लीला दिखाता हूँ।

परंतु परदे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे पग नहीं। अर्थात् मनुष्य इतना अज्ञानी है कि उसे लगता है कि सब कर्ता मैं ही हूँ। परंतु कर्ता तो कोई दूसरा ही है। जिसकी खबर किसी को भी नहीं है।



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