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“प्रकृति के विभिन्न अंगों से हम कुछ न कुछ सीखते हैं।” इस कथन की पुष्ट करते हुए प्रकृति की सीख पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।(या)पर्वत, सागर, पृथ्वी और आसमान हमें क्या संदेश देते हैं?(या)प्रकृति के संदेशों से हम जीवन सफल बना सकते हैं। “प्रकृति की सीख’ कविता पाठ के आधार पर समझाइए।(या)प्रकृति के कण – कण में कुछ न कुछ संदेश छिपा होता है। सोहनलाल द्विवेदी जी ने प्रकृति के माध्यम से कौन – सा संदेश दिया? |
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Answer» ‘प्रकृति की सीख” कविता के कवि श्री सोहनलाल द्विवेदी जी हैं । उनका जीवनकाल 1906-1988 है। अपनी अमूल्य रचनाओं से वे हिन्दी साहित्य में प्रसिद्ध हुए हैं। उनकी प्रमुख रचना ” सेवाग्राम’ है। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से विभूषित किया। प्रस्तुत कविता में कवि कहते हैं कि हमारे चारों ओर की प्रकृति के कण-कण में कुछ संदेश छिपा स्हता है । उन संदेशों का आचरण करने से हम अपने जीवन को सार्थक व सफल बना सकते हैं। पर्वत हम से कहता है कि तुम भी अपना सिर उठाकर मुझ जैसे ऊँचे (लंबे) बनजाओ । अर्थ है कि . सब में ऊँचा रहना महान गुण है। समुद्र लहराते कहता है कि मैं जैसे गहरा हूँ वैसे तुम भी अपने मन गहरे और विशाल बनाओ | माने गहराई से सोचो । समुद्र के चंचल तरंग उठ-उठ कर गिरते हैं। क्या तुम समझ सकते हो कि वे क्या कह रहे हैं ? वे कहना चाहते हैं कि तुम भी उनके जैसे अपने दिल में मीठी और कोमल आशाएँ भर लो । क्योंकि आशा को सफल बनाने का प्रयत्न ज़रूर करते हो। धरती हम से कहती है कि चाहे जितनी बडी ज़िम्मेदारी तुम्हें पूरी करनी है, धैर्य के साथ उसे पूरा करो । आकाश कहता है कि मुझ जैसा पूरा फैलकर सारी दुनिया ढक लो | माने महान बनकर सब पर अपना प्रभाव दिखाओ। |
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