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प्रश्न 3.प्रातःकाले सूर्यः कीदृशः भवति।उत्तरम्:प्रात:काले सूर्यः शान्तः भवति।

Answer»

EXPLANATION:

पाठपरिचयः सारांशः च

प्रस्तावना :

सूर्य ही प्रकृति का आधार है। ऋग्वेद, उपनिषद् तथा कालिदास व भास आदि महाकवि एवं पण्डित अम्बिकादत्त व्यास सरीखे आधुनिक कवियों ने सूर्य की आध्यात्मिक, लौकिक तथा वैज्ञानिक दृष्टि से महत्ता बताई है। प्रस्तुत पाठ का उद्देश्य भी यह बताने के लिए है कि सूर्य किस प्रकार प्रकृति का आधार है।

पाठ-सन्दर्भ :

प्रस्तुत पाठ पण्डित अम्बिकादत्त व्यास के गद्य उपन्यास ‘शिवराजविजय’ के प्रथम अध्याय से लिया गया है। शिवाजी महाराज के गुरु सेवा में तत्पर एक शिष्य अपनी पर्णकुटी से बाहर निकलकर उदित होते हुए तथा चमकते हुए सूर्य को प्रणाम करता हुआ उसकी महिमा का वर्णन करता है। यह पाठ निश्चित रूप से न केवल ज्ञानवर्द्धक ही है अपितु भाषा के सौन्दर्य का भी उत्कृष्ट उदाहरण है।

पाठ-सार :

क्या आप जानते हैं कि हमारी सृष्टि का आधार क्या है? किसके चारों ओर यह पृथ्वी नित्य भ्रमण कर रही है? निश्चय ही यह सूर्य ही है। आधार के बिना पृथ्वी आकाश में कैसे ठहरती है? कैसे ऋतुओं का तथा दिन-रात का परिवर्तन होता है। वनस्पतियों का तथा औषधियों का भी सूर्य के बिना अस्तित्व समाप्त हो जाता है। वेदों तथा उपनिषदों में सर्वत्र ही सूर्य की महिमा का वर्णन है। शिवराजविजय के प्रारम्भ में भी रम्य, अद्भुत, विज्ञानमय वर्णन उपलब्ध होता है जो यहाँ इस पाठ में दिया गया है।

मूलपाठः, शब्दार्थः, भावार्थः, सरलार्थश्च

1. अरुण एष प्रकाशः पूर्वस्यां भगवतो मरीचिमालिनः। एष भगवान् मणिराकाश-मण्डलस्य, चक्रवर्ती खेचरचक्रस्य, कुण्डलम् आखण्डलदिशः, दीपकः ब्रह्माण्डभाण्डस्य, प्रेयान् पुण्डरीकपटलस्य, शोकविमोकः कोकलोकस्य, अवलम्बो रोलम्बकदम्बस्य, सूत्रधारः सर्वव्यवहारस्य, इनश्च दिनस्य।

शब्दार्थः, पर्यायवाचिशब्दाः टिप्पण्यश्चः- अरुणः- रक्तवर्णः, लाल, अरुण (पुं०, प्रथमा विभक्तिः, एकवचनम् विशेषणपदम्। एष- एषः, यह, एतत् (पुं०), प्रथमा विभक्तिः , एकवचनम्। प्रकाश:- ज्योतिः, प्रकाश, प्र० वि०, ए०व०। पूर्वस्याम्-पूर्वदिशायाम्, प्राच्याम् दिशि, पूर्व दिशा में, पूर्व (स्त्री०), सप्तमी विभक्ति, एकवचनम्। भगवतः- ऐश्वर्य सम्पन्नस्य, भगवत्, षष्ठी विभक्तिः , एकवचनम्, विशेषणम्, भगवान् (ऐश्वर्य सम्पन्न) का। मरीचिमालिनः- मरीचिमालिन्, षष्ठी विभक्तिः, एकवचनम्, सूर्यस्य, सूर्य का, मरीचिनां किरणानां माला यस्य सः, मरीचिमालिन्, मरीचिमाला + इन्। मणिः (संज्ञा), मणिः, पुं०, प्रथमा विभक्तिः , एकवचनम्, द्युतिमत् रत्नम्, चमकता हुआ रत्न। आकाशमण्डलस्य- आकाशवृत्तस्य, आकाशस्य, आकाश का, आकाश प्रदेश का। चक्रवर्ती- चक्रवर्तिन्, प्र०वि०, ए०व०, सम्राट, राजचक्रं राजसमूहः यस्य सः। खेचर-चक्रस्य-खे चरति इति खेचरम् नक्षत्रम् उपपद तत्पुरुषः, खेचराणाम् चक्रम् समूहः, षष्ठी तत्पुरुषः, नक्षत्रमण्डलस्य, नक्षत्रमण्डल का।



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