1.

पृथ्वी के आन्तरिक भाग की भौतिक अवस्था का वर्णन कीजिए।

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पृथ्वी के आन्तरिक भाग में जाने पर प्रारम्भ में प्रति 32 मीटर की गहराई पर 1° सेग्रे तापक्रम की वृद्धि होती है। इस प्रकार पृथ्वी के आन्तरिक भाग में 20 से 30 किलोमीटर जाने पर तापक्रम की वृद्धि के कारण कोई चट्टान अपनी मौलिक अवस्था में नहीं रह सकेगी और इसे ताप आधिक्य के कारण चट्टानें द्रव अवस्था में परिवर्तित हो जाएँगी। ज्वालामुखी विस्फोट के समय निकला लावा इनका प्रमाण है। महाद्वीपों और महासागरों की उत्पत्ति के सिद्धान्त भी आन्तरिक भाग की द्रव अवस्था में होने की सम्भावना व्यक्त करते हैं, किन्तु वहाँ की चट्टानों पर ऊपरी तल का भारी दबाव उन्हें द्रव जैसा नहीं बनने देता। अत: वहाँ की सारी स्थिति बड़ी जटिल है। यदि पृथ्वी को आन्तरिक भाग द्रव होता तो स्थल भाग भी ज्वार शक्तियों के प्रभाव से प्रभावित होता। चन्द्रमा और सूर्य की आकर्षण शक्तियों से अप्रभावित रहने और पृथ्वी के ठोस पिण्ड के समान व्यवहार के कारण अनेक वैज्ञानिक पृथ्वी को ठोस ही मानते हैं, परन्तु भूकम्प लहरों के आधार पर पृथ्वी को पूर्ण रूप से ठोस भी नहीं कहा जा सकता और उसके आन्तरिक भाग को पूर्ण रूप से द्रव अवस्था में भी नहीं माना जा सकता। अतः पृथ्वी के आन्तरिक भाग की भौतिक अवस्था के सम्बन्ध में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल सकते हैं

⦁    पृथ्वी, ज्वार शक्तियों के प्रभाव के समय ठोस आकृति की भाँति व्यवहार करती है।
⦁    आन्तरिक चट्टानें उपयुक्त अवसर पर या दबाव घटने पर ही गाढ़े द्रव का रूप धारण कर लेती हैं।
⦁    आन्तरिक चट्टानें दबावमुक्त होने पर या स्थानीय रूप से विशेष तापवृद्धि के कारण ही द्रव अवस्था में आ सकती हैं।



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