InterviewSolution
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प्रतीक सुषमा से भरपूर सराईखेत में क्या समस्मरण थी |
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रचना भेजिए Home › Kavya › MERE Alfaz › Prakriti Sushma विज्ञापन प्रकृति सुषमा Prakriti Sushma Mere Alfaz *प्रकृति सुषमा* विज्ञापन प्रकृति की सुषमा अपार मन को हरती बार-बार जिधर भी दृष्टि जाती प्रकृति अपना सौंदर्य दिखाती! इस प्रकृति में खोकर कवि जन करते हैं नित नूतन वर्णन प्रातः होते ही दिनकर फैलाता है अपने रश्मि रूपी कर! तृण पर पड़ी ओस की मुक्ता सी बूंदे कलरव करते तरु नीड से पक्षी कूदे पोखरों में सोता हुआ कमल खोलता है अपने पंखुड़ी रूपी नयन! कुछ तरुओ पर खग का कूजन कुछ खग उड़ते मुक्त गगन तरुओ और लताओं का मिलन अरण्यो में पशु करते विचरण! प्रातः बहती त्रिविध पवन छू लेती हर जन का मन आगंतुक कुसुमों की सुगंध जब बहती है मंद-मंद पराग पान हेतु लोभी भ्रमर तब पुष्पों पर करता विचरण! झरनो का पर्वत से गिरना नदियों का कल-कल बहना चंचल तितली का सुमनों पर उड़ना इस प्रकृति की सुंदरता का क्या कहना! मैं अवलोक रहा हूं बार-बार इस प्रकृति का रूप और श्रंगार पर मैं इस प्रकृति का कितना करुं बखान क्योंकि यह प्रकृति है सौंदर्य की खान अब मैं प्रकृति की गोद में करूंगा विश्राम इसलिए अपनी लेखनी को देता हूं विराम! -मनोज कुमार 'अनमोल' - हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है। आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें। mark as Brainlist |
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