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Answer» पर्यावरण-शिक्षा की समस्याएँ 1. पर्यावरण के प्रति अनचित दृष्टिकोण पर्यावरण-शिक्षा की सर्वप्रमुख समस्या अशिक्षा के फलस्वरूप पर्यावरण के प्रति उचित दृष्टिकोण का न होना है। लोग यह समझ ही नहीं पाते कि उनके कार्यों से पर्यावरण कितना दूषित हो रहा है। भारत में वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई हो रही है। नदियों के जल को गन्दा किया जा रहा है और वायु-प्रदूषण तथा ध्वनि-प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। लोग इससे होने वाली हानि से अवगत ही नहीं हैं और इस स्थिति में उन्हें पर्यावरण-शिक्षा किस प्रकार दी जा सकती है? यदि किसी से कहा जाता है कि तुम ऐसा कार्य न करो, तो उसका उत्तर होता है इससे क्या हो जाता है, जब तक जीना है तब तक जिएँगे। 2. भौतिकवादी संस्कृति का अत्यधिक प्रसार पर्यावरणीय शिक्षा की अन्य समस्या भौतिकवादी संस्कृति का अत्यधिक प्रसार है। जो लोग यह जानते हैं कि पर्यावरण की शुद्धता आवश्यक है वे भी अपने आरामतलबी, अपनी आवश्यकता और अपने भौतिक उपभोग हेतु पर्यावरण को व्यापक मात्रा में दूषित कर रहे हैं। 3. साहित्य की कमी पर्यावरण-शिक्षा की एक अन्य प्रमुख समस्या इस शिक्षा के हेतु पर्याप्त मात्रा में साहित्य का विद्यालयों में पर्यावरण शिक्षा का उपलब्ध न होना है। सत्य तो यह है कि पर्यावरण के सम्बन्ध में अभी हमारा दृष्टिकोण अत्यन्त संकुचित है और ऐसे साहित्य को निर्माण अत्यन्त अल्प मात्रा में हुआ है जो पर्यावरण-शिक्षा से सम्बन्धित हो। 4. नगरीय सभ्यता का विकास पर्यावरण-शिक्षा की एक अन्य समस्या नगरीय सभ्यता का अत्यधिक विस्तार है। लोगों का व्यापक मात्रा में गाँव से नगर की ओर पलायन हो रहा है और नगरों का वातावरण अत्यन्त प्रदूषित होता जा रहा है। 5. विद्यालयों में पर्यावरण शिक्षा का अभाव-पर्यावरण-शिक्षा की एक बहुत बड़ी बाधा यह है कि अभी तक भारत के सभी विद्यालयों में पर्यावरण-शिक्षा को पाठ्यक्रम में स्थान नहीं दिया गया है। अनेक विद्यालय अभी ऐसे हैं जहाँ और सब कुछ तो पढ़ाया जाता है परन्तु पर्यावरण के सम्बन्ध में आदर्शवादी बातें ही बताई जाती हैं, यथार्थ की पृष्ठभूमि में लाकर लोगों को पर्यावरण के सम्बन्ध में शिक्षा प्रदान नहीं की जाती। पर्यावरण-शिक्षा की समस्याओं का समाधान यह सत्य है कि पर्यावरण-शिक्षा के मार्ग में विभिन्न समस्याएँ हैं परन्तु इन समस्याओं का निराकरण सम्भव है। इस सन्दर्भ में निम्नलिखित उपायों को अपनाकर सम्बन्धित समस्याओं का समाधान किया जा सकता है 1. उचित दृष्टिकोण का विकास उक्त समस्या के समाधान हेतु यह अत्यन्त आवश्यक है कि लोगों को पर्यावरण को ठीक रखने हेतु प्रेरित किया जाए। इस क्षेत्र में अंशिक्षा सबसे बड़ी बाधक है। 2. प्राचीन भारतीय आदर्शों का स्थापन इस भौतिकवादी युग में लोगों का ध्यान प्राचीन भारतीय आदर्शों की ओर उन्मुख किया जाना चाहिए। उन्हें यह बताया जाना चाहिए कि प्राचीनकाल में लोग सादा जीवन उच्च विचार रखते थे और प्रकृति के प्रति अत्यन्त संवदेनशील रहते थे। इसी कारण वे सुखमय जीवन व्यतीत करने में सफल थे। भौतिकवादी संस्कृति से जितनी दूर रहा जाएगा, उतना ही मन को सन्तोष प्राप्त होगा और पर्यावरण को जितना स्वच्छ रखा जाएगा उतना ही हमारा स्वास्थ्य ठीक रहेगा। 3. साहित्य का निर्माण पर्यावरण-शिक्षा से सम्बन्धित पार् साहित्य का निर्माण व्यापक मात्रा में किया जाना चाहिए और उसे विभिन्न स्थानों पर मुफ्त बाँटा जाना चाहिए। इस साहित्य में प्रकृति की देनों की प्रशंसा के साथ ही हर प्रकार के प्रदूषण से मुक्त रहने के उपाय भी बतलाए जाने चाहिए। 4. ग्रामीण सभ्यता को प्रोत्साहन उपर्युक्त समस्या के समाधान हेतु यह आवश्यक है कि देश में । ग्रामीण सभ्यता को प्रोत्साहन दिया जाए। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को पर्यावरण को प्रदूषित किये बिना जीविका के साधन और सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ। ग्रामीण जनता को बताया जाए कि कैसे प्राचीन युग में हमें पर्यावरण की रक्षा करने में समर्थ हुए थे। अधिक-से-अधिक पेड़ लगाए जाएँ और वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई आदि को रोका जाए। 5. पाठ्यक्रम में स्थान पर्यावरण-शिक्षा को सभी माध्यमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाना चाहिए। उचित तो यह होगा कि पर्यावरण की रक्षा नामक एक विषय ही अलग से निर्धारित कर दिया जाए और सभी को उस पाठ्यक्रम को पढ़ना एवं समझना आवश्यक हो। अन्त में हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि मानव के अस्तित्व को भौतिक, सामाजिक एवं मानसिक रूप से उन्नत बनाने हेतु जिन तत्त्वों की आवश्यकता होती है वे सभी प्रकृति में हैं। मानव का विकास तभी हो सकता है जब प्रकृति के विभिन्न तत्त्व सन्तुलित हों। प्रकृति में सन्तुलित होने की शक्ति स्वयं में व्याप्त है किन्तु मानव भी उसे सन्तुलित रखने में योगदान देता है। मानव ने अत्यधिक परिश्रम करके बंजर भूमि को खेती योग्य बनायो, सागर को पाटकर बस्तियाँ बनायी हैं, जल और थल के गर्भ से खनिज निकाले हैं, विज्ञान, विद्या और आधुनिक प्रौद्योगिकी के सहारे कृषि उद्योग एवं पशु-पालन की व्यवस्था में उन्नति की है, तो जिस प्रकृति ने उसे सब कुछ दिया है, उस प्रकृति की चिन्ता यह क्यों नहीं करता? उन्नत विकसित होने के साथ ही हम प्रकृति के सन्तुलन को बिगाड़ रहे हैं और यदि यह सन्तुलन बिगड़ गया तो मानव कैसे बचेगा? अतएव हमने प्रकृति के साथ जो कुछ किया है उसके हेतु पुनर्विचार की आवश्यकता है। डॉ० विद्या निवास मिश्र ने लिखा है-“प्रकृति का संरक्षण हम सबका पावन कर्तव्य है। हमें प्रकृति का उतना ही दोहन करना चाहिए जिससे उसका सन्तुलन न बिगड़े। यदि मानव अब भी नहीं चेता तो हमारा विनाश निश्चित है।
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