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राजनीति क्या है? आधुनिक सन्दर्भो में तर्कपूर्ण ढंग से समझाइए।

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भारतीय समाज में लोग राजनीति के बारे में अलग-अलग दृष्टिकोण रखते हैं। राजनेता और चुनाव लड़ने वाले लोग अथवा राजनीतिक पदाधिकारी कह सकते हैं कि राजनीति एक प्रकार की जनसेवा है। राजनीति से जुड़े अन्य लोग राजनीति को दावँ-पेंच मानते हैं तथा आवश्यकताओं और महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के कुचक्र में फंसे रहते हैं। कई अन्य के लिए राजनीति वही है, जो राजनेता करते हैं। अगर वे राजनेताओं को दल-बदल करते, झूठे वायदे और बढ़-चढ़े दावे करते, समाज के विभिन्न वर्गों से जोड़-तोड़ करते, निजी या सामूहिक स्वार्थों में निष्ठुरता से रत और घृणित रूप में हिंसा पर उतारू होता देखते हैं तो वे राजनीति का सम्बन्ध ‘घोटालों से जोड़ने लगते हैं। इस तरह की सोच इतनी प्रचलित है कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जब हम हर सम्भव तरीके से अपने स्वार्थ को साधने में लगे लोगों देखते हैं, तो हम कहते हैं कि वे राजनीति कर रहे हैं।

यदि हम एक क्रिकेटर को टीम में बने रहने के लिए जोड़-तोड़ करते या किसी सहपाठी को अपने पिता की हैसियत का उपयोग करते अथवी कार्यालय में किसी सहकर्मी को बिना सोचे-समझे बॉस की हाँ में हाँ मिलाते देखते हैं, तो हम कहते हैं कि वह ‘गन्दी राजनीति कर रहा है। स्वार्थपरता के ऐसे कार्यों से मोहभंग होने पर हम राजनीति से विरक्त हो जाते हैं। हम कहने लगते हैं-“मुझे राजनीति में रुचि नहीं है या मैं राजनीति से दूर रहता हूँ।” केवल साधारण लोग ही राजनीति से निराश नहीं हैं। बल्कि इससे लाभ प्राप्त करने वाले और विभिन्न दलों को चन्दा देने वाले व्यवसायी और उद्यमी भी अपनी मुसीबतों के लिए आये दिन राजनीति को ही कोसते रहते हैं।

प्रतिदिन हमारा सामना राजनीति की इसी प्रकार की परस्पर विरोधी छवियों से होता रहता है। क्या राजनीति अवांछनीय गतिविधि है, जिससे हमें अलग रहना चाहिए, और पीछा छुड़ाना चाहिए? या यह इतनी उपयोगी गतिविधि है कि विकसित विश्व बनाने के लिए हमें इसमें निश्चित ही शामिल होना चाहिए?
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजनीति का सम्बन्ध किसी भी तरीके से निजी स्वार्थ साधने के धन्धे से जुड़ गया है। हमें यह समझना चाहिए कि राजनीति किसी भी समाज का महत्त्वपूर्ण और अविभाज्य अंग है। राजनीतिक संगठन और सामूहिक निर्णय के किसी ढाँचे के बगैर कोई भी समाज जीवित नहीं रहू सकता। जो समाज अपने अस्तित्व को बचाए रखना चाहता है, उसके लिए अपने सदस्यों की विविध जरूरतों और हितों का ध्यान रखना आवश्यक होता है। परिवार, जनजाति और आर्थिक संस्थाओं जैसी अनेक सामाजिक संस्थाएँ लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने में सहायता करने के विकसित हुई हैं। ऐसी संस्थाएँ हमें साथ रहने के उपाय खोजने और एक-दूसरे के प्रति अपने कर्तव्यों को स्वीकार करने में सहायता करती हैं। इन संस्थाओं के साथ सरकारें भी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं। सरकारें कैसे बनती हैं और कैसे कार्य करती हैं, यह राजनीति में दर्शाने वाली महत्त्वपूर्ण बातें हैं।

लेकिन राजनीति सरकार के कार्य-कलापों तक ही सीमित नहीं होती है। वास्तव में, सरकारें जो भी कार्य करती हैं वह प्रासंगिक होता है क्योंकि वह कार्य लोगों के जीवन को भिन्न-भिन्न तरीकों से प्रभावित करता है। हम देखते हैं कि सरकारें हमारी आर्थिक नीति, विदेश नीति और शिक्षा नीति को निर्धारित करती हैं। ये नीतियाँ लोगों के जीवन को उन्नत करने में सहायता कर सकती हैं, लेकिन एक अकुशल और भ्रष्ट सरकार लोगों के जीवन और सुरक्षा को संकट में भी डाल सकती है। अगर सत्तारूढ़ सरकार जातीय और साम्प्रदायिक संघर्ष को बढ़ावा देती है तो बाजार और स्कूल बन्द हो जाते हैं। इससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, हम अत्यन्त आवश्यक वस्तुएँ भी नहीं खरीद सकते, बीमार लोग अस्पताल नहीं पहुँच सकते, स्कूल की समय-सारणी भी प्रभावित हो जाती है, पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो पाता। दूसरी ओर, सरकार अगर साक्षरता और रोजगार बढ़ाने की नीतियाँ बनाती हैं, तो हमें अच्छे स्कूल में जाने और बेहतर रोजगार पाने के अवसर प्राप्त हो सकते हैं।

चूंकि सरकार की कार्यवाहियों का जनसामान्य पर गहरा असर पड़ता है, जनता सरकार के कामों में रुचि लेती है। जब जनता सरकार की नीतियों से असहमत होती है तो उसका विरोध करती है और वर्तमान कानून को बदलने के लिए अपनी सरकारों को राजी करने के लिए प्रदर्शन आयोजित करती है। निष्कर्ष यह है कि राजनीति का जन्म इस तथ्य से होता है कि हमारे और हमारे समाज के लिए क्या उचित एवं वांछनीय है और क्या नहीं। इस बारे में हमारी दृष्टि अलग-अलग होती है। इसमें समाज में चलने वाली बहुविध वार्ताएँ शामिल हैं, जिनके माध्यम से सामूहिक निर्णय किए जाते हैं। एक स्तर से इन वार्ताओं में सरकारों के कार्य और इन कार्यों का जनता से जुड़ा होना शामिल होता है।



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