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राष्ट्र के स्वरूप में संस्कृति का क्या महत्त्व है?

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मनुष्य और धरती की तरह संस्कृति भी राष्ट्र का आवश्यक अंग है। यदि धरती और मानव को अलग कर दिया जाए तो राष्ट्र का स्वरूप ही नहीं बन सकता। संस्कृति के सौंदर्य और सुगंध में ही राष्ट्र के लोगों का जीवन-सौंदर्य छिपा हुआ है। संस्कृति के रूप में राष्ट्र के जीवन का विकास प्रकट होता है। एक राष्ट्र में कई संस्कृतियाँ मिल-जुलकर रह सकती हैं, उनके मेल से एक राष्ट्रीय संस्कृति बनती है। राष्ट्र और उसके निवासी अपनी संस्कृति पर गर्व करते हैं। इस प्रकार राष्ट्र के स्वरूप में संस्कृति का महत्त्वपूर्ण स्थान है।



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