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रहीम ने अपने मन की व्यथा अपने मन तक ही सीमित रखने को क्यों कहा है?

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व्यथा हो या आनंद मनुष्य का स्वभाव है कि वह इसे साझा करके सुख पाता है। जब मनुष्य का मन किसी कारण व्यथित होता है। तो उसे सहानुभूति दिखाने वाले व्यक्ति की आवश्यकता होती है। इससे उसका दुख कम हो जाता है। रहीम कहते हैं कि अपने मन की व्यथा को अपने में ही छिपा कर रखो। इसका कारण भी उन्होंने बताया है। वह कहते हैं कि यदि अपने मन की व्यथा दूसरों को सुनाओगे तो उसे बाँटने वाला तो नहीं मिल पायेगा। किन्तु उसे सुनकर इठलाने वाले, मन ही मन हँसने वाले अनेक मिल जाएँगे। इससे तुम्हारी व्यथा कम न होकर और बढ़ जाएगी।



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