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रणजीत सिंह की अमृतसर विजय का वर्णन करते हुए इसका महत्त्व बताएं।

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गुलाब सिंह भंगी की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र गुरदित्त सिंह अमृतसर का शासक बना। उस समय वह नाबालिग था। इसीलिए राज्य की सारी शक्ति उसकी मां माई सुक्खां के हाथ में थी। महाराजा रणजीत सिंह अमृतसर पर अपना अधिकार करने का अवसर ढूंढ रहा था।

1805 ई० को उसे यह अवसर मिल गया। उसने माई सुक्खां को संदेश भेजा कि वह जमजमा तोप उसके हवाले कर दे। उसने उससे लोहगढ़ के किले की मांग भी की। परन्तु माई सुक्खां ने महाराजा की मांगों को अस्वीकार कर दिया। महाराजा पहले ही युद्ध के लिए तैयार बैठा था। उसने तुरन्त अमृतसर पर आक्रमण करके लोहगढ़ के किले को घेर लिया। इस अभियान में सदा कौर तथा फतह सिंह आहलूवालिया ने रणजीत सिंह का साथ दिया। महाराजा विजयी रहा और उसने अमृतसर तथा लोहगढ़ के किले पर अधिकार कर लिया। माई सुक्खां तथा गुरदित्त सिंह को जीवन-निर्वाह के लिए जागीर दे दी गई। अमृतसर का अकाली फूला सिंह अपने 2000 निहंग साथियों के साथ रणजीत सिंह की सेना में शामिल हो गया। – अमृतसर की विजय का महत्त्व-

  1. अमृतसर की विजय लाहौर की विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह की सबसे महत्त्वपूर्ण विजय थी। इसका कारण यह था कि जहां लाहौर पंजाब की राजधानी था, वहीं अमृतसर अब सिक्खों की धार्मिक राजधानी बन गया था।
  2. अमृतसर की विजय से महाराजा रणजीत सिंह की सैनिक शक्ति बढ़ गई। उसके लिए लोहगढ़ का किला बहुमूल्य सिद्ध हुआ। उसे तांबे तथा पीतल से बनी ज़मज़मा तोप भी प्राप्त हुई।
  3. महाराजा को प्रसिद्ध सैनिक अकाली फूला सिंह तथा उसके 2000 निहंग साथियों की सेवाएं प्राप्त हुईं। निहंगों के असाधारण साहस तथा वीरता के बल पर रणजीत सिंह को कई शानदार विजय प्राप्त हुईं।
  4. अमृतसर विजय के परिणामस्वरूप रणजीत सिंह की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। फलस्वरूप बहुत-से भारतीय उसके राज्य में नौकरी करने के लिए आने लगे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी की नौकरी करने वाले अनेक भारतीय वहां की नौकरी छोड़ कर महाराजा के पास कार्य करने लगे। कई यूरोपियन सैनिक भी महाराजा की सेना में भर्ती हो गए।


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