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रणजीत सिंह की कश्मीर की विजय का वर्णन करो।

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कश्मीर की घाटी अपनी सुन्दरता के कारण पूर्व का स्वर्ग’ कहलाती थी। महाराजा रणजीत सिंह इसे विजय करके अपने राज्य को स्वर्ग बनाना चाहता था। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने निम्नलिखित प्रयास किए

1. काबुल के वजीर फतह खां से समझौता- 1811-12 ई० में सिक्खों ने कश्मीर के निकट स्थित भिंबर तथा राजौरी की रियासतों पर अधिकार कर लिया। अब वे कश्मीर घाटी पर अधिकार करना चाहते थे। परन्तु इसी समय काबुल के वज़ीर फतह खां बरकज़ाई ने भी कश्मीर विजय की योजना बनाई। अंतत: 1813 ई० में रोहतास नामक स्थान पर फतह खां तथा रणजीत सिंह के मध्य यह समझौता हुआ कि दोनों पक्षों की सेनाएं मिलकर कश्मीर पर आक्रमण करेंगी। यह भी निश्चित हुआ कि कश्मीर विजय के बाद फतह खां मुलतान की विजय में महाराजा की तथा महाराजा अटक विजय में फतह खां की सहायता करेगा। समझौते के पश्चात् महाराजा ने मोहकम चंद के नेतृत्व में 12,000 सैनिक कश्मीर विजय के लिए फतह खां की सहायता के लिए भेज दिए। परन्तु फतह खां चालाकी से सिक्ख सेनाओं को पीछे ही छोड़ गया और स्वयं कश्मीर घाटी में प्रवेश कर गया। उसने कश्मीर के शासक अत्ता मुहम्मद को सिक्खों की सहायता के बिना ही पराजित कर दिया। इस प्रकार उसने महाराजा के साथ हुए समझौते को तोड़ दिया।

2. कश्मीर पर आक्रमण- जून, 1814 ई० में सिक्ख सेना ने राम दयाल के नेतृत्व में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। उस समय कश्मीर का सूबेदार फतह खां का भाई आज़िम खां था। वह एक योग्य सेनापति था। जैसे ही रामदयाल की सेना ने पीर पंजाल दर्रे को पार करके कश्मीर घाटी में प्रवेश किया, आज़िम खां ने थकी हुई सिक्ख सेना पर धावा बोल दिया। फिर भी रामदयाल ने बड़ी वीरता से शत्रु का सामना किया। अन्त में आज़िम खां तथा रामदयाल में समझौता हो गया।

3. कश्मीर पर अधिकार- 1819 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मौका पाकर मिसर दीवान चन्द के अधीन 12,000 सैनिकों को कश्मीर भेजा। उसकी सहायता के लिए खड़क सिंह के नेतृत्व में एक अन्य सैनिक टुकड़ी भी भेजी गयी। महाराजा स्वयं भी तीसरा दस्ता लेकर वजीराबाद चला गया। मिसर दीवान चन्द ने भिंबर पहुंच कर राजौरी, पुंछ तथा पीर पंजाल पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् सिक्ख सेना ने कश्मीर में प्रवेश किया। वहां के कार्यकारी सूबेदार जबर खां ने सपीन (स्पाधन) नामक स्थान पर सिक्खों का डट कर सामना किया। फिर भी सिक्ख सेना ने 5 जुलाई, 1819 ई० को कश्मीर को सिक्ख राज्य में मिला लिया। दीवान मोती राम को कश्मीर का सूबेदार नियुक्त किया गया।

महत्त्व-महाराजा के लिए कश्मीर विजय बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई-

  1. इस विजय से महाराजा की प्रसिद्धि में वृद्धि हुई।
  2. इस विजय से महाराजा को 36 लाख रुपए की वार्षिक आय होने लगी
  3. इस विजय ने अफ़गानों की शक्ति पर भयंकर प्रहार किया।


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