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साधु ने सदाचार और भ्रष्टाचार के बारे में क्या कहा ?

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साधु ने कहा कि भ्रष्टाचार और सदाचार दोनों ही व्यक्ति की अपनी आत्मा में होते हैं। यह बाहर से आने वाली वस्तु नहीं है। मनुष्य को जब ईश्वर बनाता है तब वह किसी की आत्मा में ईमान की कल को फिट कर देता है और किसी की आत्मा में बेईमानी की कल को फिट कर देता है। इस कल में से ईमान या बेईमानी के स्वर ध्वनि के रूप में निरंतर निकलते रहते हैं। इन स्वर ध्वनियों को ही ‘आत्मा की पुकार’ कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति आत्मा की पुकार के अनुसार ही अपना कार्य करता है। किन्तु जिन व्यक्तियों की आत्मा से निरंतर बेईमानी के स्वर निकलते रहते हैं, उन्हें किस प्रकार से दबाया जाए। उनके बेईमानी के स्वर को ईमान के स्वर में कैसे परिवर्तित किया जाए। कई वर्षों तक निरन्तर चिंतन करने के बाद अब मैंने एक ऐसे तावीज़ का निर्माण किया है जो व्यक्ति को सदाचारी बनाता है। यह तावीज़ जिस व्यक्ति की भुजा पर बँधा होगा वह सदाचारी बन जाएगा।



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