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साइजी माकिनो भारत किसलिए आए थे?​

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साइजी

"हिंदी विश्व शांति की भाषा बने और मैं जीवन पर्यंत इससे जुड़ा रहूँ यह मेरी कामना है"

साइजी माकिनो 36 वर्ष की उम्र में एक बार भारत आए तो फिर यहीं के होकर रह गए.

आए तो थे गांधी जी के सेवाग्राम में स्थित हिंदुस्तानी तालीमी संघ में पशु चिकित्सक के रूप में पर हिंदुस्तान का ऐसा रंग चढ़ा कि फिर जापान लौटने का मन ही नहीं किया.

खादी के कपड़े, सीधा-सरल व्यक्तित्व, व्यवहार में गज़ब की सादगी और आंखों में झाँकती ईमानदारी. एक ऐसा व्यक्ति जिसे देखकर ही उसकी निश्छलता, मेहनत, निष्ठा और समर्पण का अंदाजा लगाया जा सकता है.

82 वर्ष की उम्र में भी कुछ और करने, कुछ और लिखने की इच्छा. कंधे भले ही कुछ झुक गए हो पर इरादे अब भी बुलंद हैं. महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर और बिनोबा भावे के भक्त और हिंदी सेवी साइजी माकिनो को दिल्ली स्थित हिंदी भवन ने ‘हिंदी रत्न’ से सम्मानित किया है.

पेश है इस अवसर पर रत्ना कौशिक की माकिनो से हुई बातचीत के अंश



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