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सार्थक सिनेमा का दौर कौन सा था ॽ् विस्तार में बताएं​

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जाने-माने फिल्म अभिनेता ओमपुरी का कहना है कि सिनेमा प्रेमियों की कमी नहीं है, लेकिन अच्छे सिनेमा की समझ की बड़ी जरूरत है। उन्होंने कहा कि सार्थक फिल्मों को बढ़ावा देना चाहिए। सामाजिक मुद्दों पर अधिक फिल्में बने, इसी में सिनेमा की सार्थकता बनी रह सकती है। सामाजिक बुराइयों के खिलाफ फिल्में बनाने तथा दर्शकों को इससे जोड़ने के लिए युवाओं को पहल करनी होगी।

ओमपुरी डीएवी महाविद्यालय में चल रहे पांच दिवसीय इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे। ओमपुरी ने अपने फिल्मी सफर के अनुभवों के बारे में कहा कि आज फिल्में तकनीकी रूप से तो मजबूत हो रही हैं, लेकिन सामाजिक रूप से अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। व्यवसाय के दृष्टिकोण से फिल्में बनाना ठीक है, लेकिन सामाजिक बुराइयों के खिलाफ भी फिल्में बननी चाहिए। पुराने दौर को याद करते हुए ओमपुरी ने कहा कि 50 से 60 के दशक में फिल्मों का स्वर्ण युग था। उस समय साहित्य, कला, रंगमंच तथा संगीत से जुड़े लोग सिनेमा के क्षेत्र में आगे आए। इसके बाद 80 से 90 के दौर में भी फिल्मों की गरिमा को कायम रखा गया। विनोद चोपड़ा तथा सईद मिर्जा साहब जैसे फिल्मकारों ने अच्छा काम किया। भारतीय सिनेमा को ऐसे फिल्मकारों ने ही ऊंचाई बक्शी। धीरे-धीरे स्थितियां बदलती गई। आज फिर जरूरत पड़ रही है महानगरों से निकलकर छोटे-छोटे शहरों में फिल्म फेस्टिवल के आयोजन की। लोगों को सार्थक सिनेमा की समझ विकसित करने की भी जरूरत है। उन्होंने कहा कि 50 प्रतिशत फिल्में सामाजिक मुद्दों पर बननी चाहिए। फिल्म मेकर भी विचार करें कि वह फिल्मों के माध्यम से समाज को क्या दे रहे हैं। फिल्मों में करियर की बड़ी संभावनाएं हैं। बिगड़ी व्यवस्था के खिलाफ भी आवाज बुलंद करने की जरूरत है



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